Sharad Purnima 2020: हिन्दू धर्म में शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) का बड़ा महात्म्य है. इस दिन श्री सत्यनारायण भगवान और मां लक्ष्मी की पूजा का विधान है. मान्यता है कि साल में यही वो दिन होता है जब चंद्रमा अपनी 16 कलाओं के साथ आसमान पर दिखाई देता है. शरद पूर्णिमा के दिन विशेष रूप से चंद्रमा की पूजा-अर्चना की जाती है. कहते हैं कि इस दिन चंद्रमा से अमृत वर्षा होती है और इस अमृत में कई औषधीय गुण होते हैं. यह वजह है कि इस दिन खीर बनाकर छत पर रख दी जाती है और फिर पूरे परिवार के साथ बैठकर अमृत वाली खीर को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है. हिन्दू मान्यताओं के अनुसार 16 कलाओं से निपुण व्यक्ति को ही पुरुषोत्तम कहा गया है. कहते हैं कि भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ने 16 कलाओं के साथ जन्म लिया था, जबकि पर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम 12 कलाओं में निपुण थे.
शरद पूर्णिमा कब आती है?
हिन्दू पंचांग के अनुसार अश्विन मास की शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह पूर्णिमा हर साल अक्टूबर के महीने में आती है.
शरद पूर्णिमा की तिथि और शुभ मुहूर्त
शरद पूर्णिमा की तिथि: 30 अक्टुबर 2020
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 30 अक्टूबर 2020 को शाम 5 बजकर 45 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 30 अक्टूबर 2020 को रात 8 बजकर 18 मिनट
शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रोदय का समय: शाम 5 बजकर 11 मिनट
शरद पूर्णिमा की पूजा विधि
- शरद पूर्णिमा के दिन सुबह-सवेरे उठकर नित्य कर्म से निवृत्त हो जाएं और स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
- अब घर के मंदिर में पूर्व दिशा की ओर मुख कर आसन पर बैठ जाएं.
- सबसे पहले श्री गणेश की प्रतिमा को नमस्कार करें
- अब तांबे या पीतल के बर्तन में मां लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें.
- फिर प्रतिमा को पहले पंचामृत और फिर स्वच्छ जल से स्नान कराएं.
- मां की प्रतिमा को वस्त्र और आभूषण पहनाएं.
- इसके बाद सत्यनारायण भगवान की प्रतिमा को भी स्नान कराएं और वस्त्र अर्पित करें.
- फिर श्री गणेश, मां लक्ष्मी और भगवान सत्यनारायण को अक्षत, कुमकुम और रोली का तिलक लगाएं.
- इसके बाद फल, फूल और नैवेद्य अर्पित करें.
- फिर धूप दीप से आरती उतारें.
- भगवान को भोग लगाएं.
- दिन भर उपवास रखें.
- शाम के समय श्री सत्यनारायण और मां लक्ष्मी की आरती उतारें.
- श्री सत्यनारायण की कथा पढ़ें.
- अब चंद्रमा की आरती उतारें और अर्घ्य दें.
- चंद्रोदय के समय आकाश के नीचे खीर बनाकर रख दें.
- रात 12 बजे मां लक्ष्मी को इस खीर का भोग लगाएं और परिवार के सभी सदस्यों में इस प्रसाद को बांटें.
शरद पूर्णिमा का महत्व
शरद पूर्णिमा के व्रत को कोजागर पूर्णिमा (Kojagiri Purnima), कौमुदी व्रत (Kaumudi Vrat) और रास पूर्णिमा (Ras Purnima) के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन व्रत रखा जाता है और विधि-विधान से चंद्रमा की पूजा की जाती है. मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन ही श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ महारास किया था. कहते हैं कि शरद पूर्णिमा की रात श्रीकृष्ण की मनमोहक मुरली सुन गोपियां इस तरह मंत्र मुग्ध हो गईं कि वे अपना घर-परिवार छोड़ सीधे जंगल पहुंचकर श्रीकृष्ण के साथ नृत्य करने लगीं. यही नहीं श्रीकृष्ण ने हर एक गोपी के साथ नाचने के लिए अनेकों कृष्ण बनाएं जो उनके साथ पूरी रात नाचते रहे. ऐसा माना जाता है कि कृष्ण ने अपनी माया से उस रात को ब्रह्मा की एक रात के बराबर कर दिया जो कि मनुष्यों की अरबों रातों के बराबर होती है.
कोजागर पूर्णिमा का महत्व
देश के कई हिस्सों में शरद पूर्णिमा को कोजागर पूर्णिमा (Kojagiri Purnima) के रूप में मनाया जाता है. मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात मां लक्ष्मी 'को जाग्रति' कहते हुए आकाश में विचरण करती हैं. संस्कृत में 'को जाग्रति' का अर्थ है 'कौन जगा हुआ है'. ऐसा माना जाता है कि जो भी शरद पूर्णिमा की रात जागरण करता है माता लक्ष्मी उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं. इस दिन पूरे विधि-विधान से मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है.
कुमार पूर्णिमा का महत्व
शरद पूर्णिमा को कुछ जगहों पर कुमार पूर्णिमा (Kumar Purnima) भी कहा जाता है. ओडिशा राज्य में कुमार पूर्णिमा का विशेष महत्व है. इस दिन कुवांरी लड़कियां भगवान कार्तिकेय की पूजा करती हैं और शाम को चांद निकलने के बाद व्रत खोलती हैं. मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से मनपसंद व सुयोग्य जीवन साथी मिलता है.
शरद पूर्णिमा की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक साहुकार को दो पुत्रियां थीं. दोनो पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थीं, लेकिन बड़ी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधूरा व्रत करती थी. इसका परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी. उसने पंडितों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी, जिसके कारण तुम्हारी संतान पैदा होते ही मर जाती है. पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक करने से तुम्हारी संतान जीवित रह सकती है.
उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया. बाद में उसे एक लड़का पैदा हुआ, जो कुछ दिनों बाद ही फिर से मर गया. उसने लड़के को एक पाटे (पीढ़ा) पर लेटा कर ऊपर से कपड़ा ढक दिया. फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पाटा दे दिया. बड़ी बहन जब उस पर बैठने लगी तो उसका घाघरा बच्चे से छू गया.
घाघरा छूते ही बच्चा रोने लगा. तब बड़ी बहन ने कहा, "तुम मुझे कलंक लगाना चाहती थी. मेरे बैठने से यह मर जाता." तब छोटी बहन बोली, "यह तो पहले से मरा हुआ था. तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है. तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है."
उसके बाद नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया.
Leave Your Comment