'उत्तम खेती, मध्यम बान : निकृष्ट चाकरी, भीख निदान' यह लोक विज्ञान पर आधारित कालजयी कहावत है जिसका मतलब है, सबसे अच्छी खेती, फिर व्यापार, फिर नौकरी और जब ये कोई न मिलें तो भीख मांगकर जीवन-यापन करें. यह कहावत भारत में कृषि के महत्व को बताता है. वैसे भी 135 करोड़ जनसंख्या वाले देश में बिना कृषि आत्मनिर्भरता संभव भी नहीं है.
हाल ही में केंद्र सरकार ने तीन कृषि विधेयक को देश की संसद में पेश किया. जो लोकसभा और राज्यसभा में पारित होकर कानून बनने की तरफ अग्रसर है. भारत में स्वतंत्रता के समय देश के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान 55% था और वर्तमान में यह घटकर 17 प्रतिशत रह गया है. लेकिन अब भी 53% जनसंख्या रोजगार के लिए कृषि पर निर्भर है. पिछले कई दशकों से किसानों के आय को बढ़ाने की बात सरकार की तरफ से होती रही हैं लेकिन जमीन पर अभी भी कुछ अधिक परिवर्तन नहीं देखने को मिला है. किसानों की जब भी बात होती है तो पंजाब हरियाणा तक ही रह जाती है क्योंकि बिहार, झाऱखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के किसानों के परिवार का कोई न कोई सदस्य अब प्रवासी मजदूर बन गया है उसके आय का प्रमुख स्त्रोत अब कारखानों में मजदूरी करना रह गया है.
देशभर के किसानों को कृषि सुधार विधेयकों के पारित होने पर बधाई देता हूं।
— Narendra Modi (@narendramodi) September 18, 2020
नए प्रावधानों के लागू होने से किसान अपनी फसल को देश के किसी भी बाजार में मनचाही कीमत पर बेच सकेंगे।
किसान और ग्राहक के बीच जो बिचौलिए होते हैं, उनसे किसानों को बचाने के लिए ये विधेयक रक्षा कवच बनकर आए हैं। pic.twitter.com/nnF4afkPaY
सरकार के तीन नए विधेयक में क्या है? कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश, 2020, राज्य सरकारों को मंडियों के बाहर की गई कृषि उपज की बिक्री और खरीद पर टैक्स लगाने से रोकता है और किसानों को लाभकारी मूल्य पर अपनी उपज बेचने की स्वतंत्रता देता है. सरकार का कहना है कि इस बदलाव के जरिए किसानों और व्यापारियों को किसानों की उपज की बिक्री और खरीद से संबंधित आजादी मिलेगी, जिससे अच्छे माहौल पैदा होगा और दाम भी बेहतर मिलेंगे. सरकार का कहना है कि इस अध्यादेश से किसान अपनी उपज देश में कहीं भी, किसी भी व्यक्ति या संस्था को बेच सकते हैं. इस अध्यादेश में कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी मंडियों) के बाहर भी कृषि उत्पाद बेचने और खरीदने की व्यवस्था तैयार करना है. इसके जरिये सरकार एक देश, एक बाजार की बात कर रही है.
किसान अपना उत्पाद खेत में या व्यापारिक प्लेटफॉर्म पर देश में कहीं भी बेच सकेंगे. कृषि मंत्री ने लोकसभा में कहा था कि इससे किसानों को आजादी मिलेगी.
आवश्यक वस्तु (संशोधन) बिल -2020 करीब 65 साल पुराने वस्तु अधिनियम कानून में संशोधन के लिए लाया गया है. इस बिल में अनाज, दलहन, आलू, प्याज समेत कुछ खाद्य वस्तुओं (तेल) आदि को आवश्यक वस्तु की लिस्ट से बाहर करने का प्रावधान है. सरकार का तर्क है कि इससे निजी लोगों को व्यापार करने में आसानी होगी और सरकारी हस्तक्षेप से मुक्ति मिलेगी. सरकार का ये भी दावा है कि इससे कृषि क्षेत्र में विदेशी निवेश को बढ़ावा मिल सकेगा. लेकिन किसान नेताओं का कहना है कि सरकार इसके माध्यम से कृषि क्षेत्र को निजी कंपनियों के हाथों में सौंपना चाहती है.
इन तीनों ही कानूनों को केंद्र सरकार ने लॉकडाउन के दौरान 5 जून 2020 को अध्यादेश की शक्ल में लागू किया था. तब से ही इन पर बवाल मचा हुआ है. केंद्र सरकार इन्हें अब तक का सबसे बड़ा कृषि सुधार कह रही है. लेकिन, विपक्षी पार्टियों को इसमें किसानों का शोषण और कॉर्पोरेट्स का फायदा दिख रहा है.
मूल्य आश्वासन तथा कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता बिल -2020 में प्रावधान किया गया है कि किसान पहले से तय मूल्य पर कृषि उपज की सप्लाय के लिए लिखित समझौता कर सकते हैं. सरकार का कहना है कि आर्थिक लाभ कमाने में बिचौलिए की भूमिका को खत्म करने की तरफ बढ़ाया गया यह कदम है.
क्यों हो रहा है विरोध? किसान और व्यापारियों को इन विधेयकों से एपीएमसी मंडियां खत्म होने की आशंका है. कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020 में कहा गया है कि किसान अब एपीएमसी मंडियों के बाहर किसी को भी अपनी उपज बेच सकता है.
एमएसपी को लेकर है चिंता किसानों को यह भी डर है कि नए कानून के बाद एमएसपी पर फसलों की खरीद सरकार बंद कर देगी. दरअसल, कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020 में इस संबंध में कोई व्याख्या नहीं है कि मंडी के बाहर जो खरीद होगी वह न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे के भाव पर नहीं होगी.
केंद्र सरकार के इस विधयेक पर हर तरफ से विरोध देखने को मिल रहा है. बीजेपी की सहयोगी पार्टी अकाली दल के नेता ने इस विधेयक के विरोध में त्यागपत्र भी दे दिया था. किसान भी सड़कों पर इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं. आम लोग जो इससे सीधे तौर पर जुड़े नहीं है उनका कहना है कि सरकार ने पहले जीएसटी के मुद्दे पर भी कहा था कि यह अबतक के इतिहास का सबसे बड़ा कर सुधार है लेकिन जीएसटी की खामियों की वजह से देशभर में लोग परेशान हैं.
इस विधेयक के आने से पहले तक कांग्रेस पार्टी के घोषणापत्र में इसका जिक्र सामने आया है. लेकिन अब कांग्रेस की तरफ से इसका विरोध देखने को मिल रहा है. बीबीसी से बातचीत में कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा का मानना है कि कृषि क्षेत्र में जो सुधार की बात की गई है उसमें से ज्यादातर पहले से ही चल रही है. कई मामलों में यह रिपैकेजिंग की तरह है. इसमें से कई को ज़मीनी स्तर पर आने में सालों लगेंगे. इसलिए किसानों को जो तत्काल राहत की ज़रूरत है वो नहीं मिलती दिख रही है. उन्हें सीधे रक़म देने की ज़रूरत है.
स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने कहा है कि यह किसान विरोधी अध्यादेश हैं. सरकार ने कोरोना काल में जो तीन काले अध्यादेश लाए थे, उनको किसानों ने नहीं मांगे थे. सरकार कोरोना काल का फायदा उठाकर चोर दरवाजे से तीन अध्यादेश किसानों पर थोपे हैं.किसान कह रहे हैं कि ये तीन अध्यादेश किसान विरोधी हैं, देश का किसान इसको बर्दाश्त नहीं करेगा.
"जिस देश मे जय जवान जय किसान का नारा दिया जाता है उस देश के किसानों को सरकार ने आत्म हत्या करने पर मजबूर कर दिया है।" - @_YogendraYadav
— Swaraj Abhiyan (@swaraj_abhiyan) September 15, 2020
सरकार द्वारा लाए गए तीनो अध्यादेशों के खिलाफ संसद से लेकर गांव-गांव तक सांकेतिक प्रदर्शन करेंगे किसान।
Full Video : https://t.co/DS6hPtZHrV pic.twitter.com/wxSq63oIMC
आरएसएस से जुड़े किसान संगठन- भारतीय किसान संघ (BKS) ने भी केंद्र सरकार के कानून का विरोध किया है. भारतीय किसान संघ के महासचिव बद्री नारायण चौधरी ने इंडिया टुडे से कहा है कि यह विधेयक उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने वाले है. इनसे किसानों की जिंदगी और भी कठिन होने वाली है.
गौरतलब है कि देश में कोरोना संकट और उससे पहले के हालतों के कारण भारत की अर्थव्यस्था काफी कमजोर हो गयी है. केंद्र सरकार लगातार एक के बाद एक कदम उठा रही है. सरकार ने हाल ही में रेलवे में निजी हस्तकक्षेप को बढ़ावा दिया है. कोयला क्षेत्र में भी सरकार ने कोल इंडिया के प्रभाव को कम करते हुए निजी क्षेत्र को आगे आने का रास्ता साफ किया है. सरकार अब कृषि क्षेत्र में भी निवेश करवाने की तैयारी में है!
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