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Sushant Singh Rajput Case: क्‍या CBI का रिकॉर्ड कोई उम्मीद जगाता है?

Atit

25 Aug, 2020 06:47 pm

अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput) का केस मिलने के साथ ही सीबीआई पूरे एक्शन में है. टीवी चैनलों की मानें, तो सुशांत का केस सीबीआई ने फिफ्टी परसेंट क्रैक कर लिया है. अब बस, मुख्य आरोपी रिया चक्रवर्ती से सवाल-जवाब होंगे और क़रीब ढाई महीने से चर्चित ये हाई प्रोफ़ाइल केस...कोर्ट में ओपन ऐंड शट हो जाएगा.

पर, क्या वाक़ई ऐसा है? क्या देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी, सुशांत सिंह राजपूत केस के आरोपियों पर वो इल्ज़ाम साबित कर सकेगी, जो सुशांत के पिता ने अपनी FIR में लगाए हैं?

सबसे पहले तो आपको ये समझना होगा कि सुशांत सिंह राजपूत के केस में CBI किस एंगल से जांच कर रही है? सबसे पहले तो ये समझ लीजिए कि सीबीआई उसी FIR के आधार पर जांच कर रही है, जो सुशांत के पिता कृष्ण कुमार सिंह ने पटना में दर्ज कराई थी. और इसमें रिया चक्रवर्ती समेत कुल सात लोगों पर जो आरोप लगाए गए हैं, वो कुछ इस तरह हैं-

  1. आत्महत्या के लिए उकसाना
  2. अवैध तरीक़े से बंधक बनाया
  3. घर वालों से बात करने से रोका
  4. पैसों की हेराफेरी की
  5. इलाज के नाम पर सुशांत के साथ तंत्र-मंत्र किया

मुंबई में CBI की टीम इन्हीं आरोपों की जांच कर रही है. वहीं, सुशांत के तमाम फैन्स और उनके परिवार के लोग खुलकर सुशांत के मर्डर की थ्योरी को उछाल रहे हैं. अगर, सीबीआई मर्डर के एंगल से जांच करना चाहती है, तो उसे सबसे पहले सुसाइड की थ्योरी को ख़ारिज करना होगा. और इस काम में सबसे बड़ा रोड़ा बन गई है सुशांत की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट. सुशांत के पिता के वकील का आरोप है कि सुशांत का पोस्टमॉर्टम बहुत हड़बड़ी में किया गया. वहीं, मुंबई पुलिस के सोर्स ये कहते हैं कि ऐसा, सुशांत के जीजा के दबाव में किया गया. सुशांत के जीजा ओपी सिंह, हरियाणा पुलिस में बड़े अधिकारी हैं. और इस बात की पूरी संभावना है कि उन्होंने अपने पुलिस अधिकारी होने का लाभ लेते हुए मुंबई पुलिस पर ये दबाव बनाया हो कि पोस्टमॉर्टम की औपचारिकता जल्द से जल्द पूरी कर दी जाए. 

लेकिन, आनन-फ़ानन में हुए पोस्टमॉर्टम की रिपोर्ट में एक्सपर्ट लगातार कमियां निकाल रहे हैं. इसमें तो मौत का वक़्त दर्ज है. और न ही, सुशांत के पेट में मिले तत्वों का ज़िक्र. एक एक्सपर्ट तो ये भी कह रहे हैं कि सुशांत सिंह राजपूत की गर्दन पर लिगेचर मार्क यानी फांसी के फंदे का निशान था भी या नहीं, ये भी स्पष्ट नहीं. इस पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट ने सीबीआई की राह मुश्किल कर दी है.

सुशांत केस में सीबीआई को इस बाधा से पार पाने में विसरा रिपोर्ट से मदद मिल सकती है. लेकिन, सीबीआई की टीम के मुंबई की कलीना फोरेंसिक लैब से पहुंचने से पहले ही ये अफवाह उड़ी कि सुशांत ने ड्रग लिया था. या उन्हें केमिकल देकर मारा गया. हालांकि, विसरा रिपोर्ट तैयार करने वाले डॉक्टरों ने साफ़ किया है कि उन्होंने सुशांत की जो विसरा रिपोर्ट तैयार की है, उसमें ऐसा कुछ नहीं है. और दिक़्क़त की बात ये है कि सुशांत के विसरा का 80 प्रतिशत हिस्सा, कलीना की फोरेंसिक लैब ने इस्तेमाल कर लिया है. ऐसे में अब सीबीआई के पास इस केस की तह तक जाने और सुशांत की मौत की वजह का पता लगाने के लिए सिर्फ़ 20 प्रतिशत विसरा से काम चलाना होगा.

अगर, सीबीआई की टीम सुसाइड को रूल आउट करने में सफल नहीं होती, तो रिया चक्रवर्ती और बाक़ी आरोपियों के ख़िलाफ़ जो सबसे बड़ा मामला IPC की धारा 306 के तहत दर्ज है, वो है आत्महत्या के लिए उकसाने का. इसमें सज़ा तो दस साल क़ैद की हो सकती है. मगर, ये आरोप जितना संगीन है, उसे साबित करना उतना ही मुश्किल. और सीबीआई का इस मामले में रिकॉर्ड बेहद ख़राब रहा है.

केस क्रैक करने और आरोपियों को सज़ा दिलाने के मामले में सीबीआई का रिकॉर्ड 65 से 71 प्रतिशत रहा है. जो विश्व की किसी भी जांच एजेंसी के बराबर है. मगर, ख़ुदकुशी के लिए उकसाने के मामले में सीबीआई का सक्सेस रेट ज़ीरो रहा है.

इसकी बड़ी मिसाल, बॉलीवुड का एक और चर्चित सुसाइड केस अभिनेत्री जिया ख़ान का था. जानकार कहते हैं कि जिया ख़ान की आत्म हत्या का केस सुशांत के केस से काफ़ी मज़बूत था. जिया ख़ान ने 2013 में सुसाइड किया था. और उन्होंने मरने से पहले छह पेज का एक सुसाइड नोट भी लिख कर छोड़ा था. इस सुसाइड नोट में जिया ने आदित्य पंचोली के बेटे और अपने पार्टनर सूरज पंचोली को अपनी मौत का ज़िम्मेदार बताया था. इस नोट के आधार पर सूरज पंचोली को गिरफ़्तार भी किया गया. लेकिन सिर्फ़ 19 दिन बाद उन्हें ज़मान मिल गई. क़रीब एक साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने जिया ख़ान की मां राबिया ख़ान की अपील पर ये केस सीबीआई को सौंप दिया था. 

जिया ख़ान की मौत को सात साल से ज़्यादा वक़्त बीत चुका है. मगर अब तक इस मामले में किसी को सज़ा नहीं हुई है. हालांकि, सीबीआई ने चार्जशीट पेश कर दी है. लेकिन, बात उससे आगे नहीं बढ़ी है. आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप साबित करना टेढ़ी खीर होता है. क्योंकि, आरोपी अपने बचाव में जो दावे करता है, उसकी तस्दीक करने के लिए वो शख़्स नहीं होता, जिसकी मौत के लिए आरोपी को ज़िम्मेदार ठहराया जाता है. उसकी मानसिक स्थिति क्या थी? क्या वो डिप्रेशन में था? ये ऐसी बातें हैं, जिन्हें अदालत में साबित कर पाना बेहद मुश्किल है.

ऐसी स्थिति में सीबीआई के लिए सुशांत के केस में मुजरिमों को सज़ा दिला पाना बेहद मुश्किल होगा. हां, अगर ये मामला सुसाइड के बजाय मर्डर का बन जाता है और सीबीआई नई FIR दर्ज करके जांच करती है, तो हम कुछ उम्मीद ज़रूर कर सकते हैं.

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