प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मनाली को लेह से जोड़ने वाली अटल टनल राष्ट्र को समर्पित किया. समुद्र तट से क़रीब दस हज़ार फुट ऊंचाई पर बनी ये सुरंग, दुनिया की सबसे लंबी हाइवे सुरंग है. इस सुरंग के चालू होने से मनाली से लेह जाने में लगने वाला टाइम चार से पांच घंटे तक कम हो जाएगा. एक और ख़ास बात ये होगी कि ये सुरंग मनाली से लाहौल-स्पीति को पूरे साल जोड़े रखेगी. जबकि इससे पहले भारी बर्फ़बारी के चलते लाहौल और स्पीति की घाटी साल के छह महीने देश के बाक़ी हिस्सों से कटी रहती थी.
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अटल टनल को बनाने का फ़ैसला जून 2000 में उस वक़्त के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने लिया था. इसे पहले रोहतांग सुरंग का नाम दिया गया था. मोदी सरकार ने इस सुरंग को पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी के नाम पर अटल टनल रखने का फ़ैसला किया.
नौ किलोमीटर से ज़्यादा लंबी इस सुरंग को बेहद आधुनिक सुविधाओं के साथ बनाया गया है. जो हिमालय की पीर पंजाल पहाड़ियों को काटकर बनाई गई है. समुद्र तल से इसकी औसत ऊंचाई तीन हज़ार मीटर है.
प्रधानमंत्री श्री @narendramodi ने अटल टनल, रोहतांग को देश को समर्पित किया। #AtalTunnel pic.twitter.com/pbMX6Oyinc
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इस सुरंग का दक्षिणी छोर, हिमाचल प्रदेश के मनाली शहर से क़रीब पच्चीस किलोमीटर दूर है. वहीं, सुरंग का दूसरा सिरा, लाहौल घाटी के तेलिंग में खुलता है. ये सुरंग घोड़े की नाल के आकार की है. इसकी चौड़ाई लगभग आठ मीटर और ऊंचाई साढ़े पांच मीटर से अधिक है. इस सुरंग को हर दिन तीन हज़ार कारों और 1500 ट्रकों की क्षमता के लिहाज़ से तैयार किया गया है. जो अधिकतम अस्सी किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से इस सुरंग से गुज़र सकेंगे.
अटल टनल में इलेक्ट्रोमेकैनिकल सिस्टम, और सेमी ट्रांसवर्स वेंटिलेशन सिस्टम भी लगाया गया है. आग लगने की किसी घटना से निपटने के लिए भी आधुनिक तकनीक से लैस सुविधाएं इस सुरंग में लगाई गई हैं. इनमें सुरंग के भीतर रौशनी और गुज़रने वाले ट्रैफ़िक पर नज़र रखने की सुविधा शामिल है.
अटल टनल को बनाने में 3 हज़ार 300 करोड़ रुपये का ख़र्च आया है. देश की सुरक्षा के लिहाज़ से अटल टनल बेहद महत्वपूर्ण है. अब इसके माध्यम से मनाली से लेह पहुंचना और आसान हो गया है. और भारत के लिए लद्दाख में सामरिक साज़-ओ-सामान पहुंचाना काफ़ी आसान हो जाएगा. सुरंग का सबसे मुश्किल हिस्सा सेरी नाला का 587 मीटर का हिस्सा था, जो फॉल्ट ज़ोन में है.
इस सुरंग के चालू होने से सबसे अधिक फ़ायदा उन किसानों को होगा जो आलू या मटर को बिना खराब हुए कुल्लू मंडी तक समय पर पहुंचा सकेंगे. इसके अलावा साल भर ताज़ा सब्ज़ियों और पेट्रोल जैसे ईंधन की सप्लाई भी मिलती रहेगी. ये इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि, बर्फ से हाइवे जम जाने की वजह से ये इलाके अक्टूबर से अप्रैल तक बंद हो जाते थे. वैसे भी लद्दाख अपनी बेहद सख़्त आब-ओ-हवा के चलते, छोटी-छोटी चीजों के लिए दूसरे शहरों पर निर्भर है. इसके अलावा लद्दाख के तमाम स्कूल जो पंजाब समेत दूसरी जगहों से किताबों और दूसरी चीजें मंगाते थे उन्हें भी एक और विकल्प हासिल हो गया है. अब उन्हें महीनों पहले चीजें नहीं जुटाकर रखनी होंगी.
लेकिन इस सुरंग के खुलने से कुछ लोग आशंकित भी हैं. क्योंकि, हर मौसम में बेहतर कनेक्टिविटी का मतलब है कि अब यहां टूरिस्टों की भरमार होने लगेगी. उन्हें डर है कि प्रकृति के जो अनछुए नजारे थे वे भीड़भाड़ वाली जगहों और कूडे़ के ढेर में न तब्दील हो जाएं.
दुनिया में सबसे ऊंचाई पर बनी सबसे लंबी अटल टनल का ख़्वाब लगभग 160 साल बाद साकार हो रहा है. ब्रिटिश राज में, साल 1860 में सबसे पहले मोरोविया के मिशनरीज ने रोहतांग दर्रे के नीचे सुरंग बनाने की कल्पना की थी. हालांकि उनकी ये कल्पना साकार नहीं हुई. अंग्रेज़ों के जाने के बाद आज़ाद भारत में साल 1953 में सुरंग बनाने के प्रस्ताव को खारिज कर राहलाफाल से रोहतांग और कोकसर तक रोपवे बनाने की योजना भी बनी थी. लेकिन, वो भी परवान नहीं चढ़ सकी.
इस सुरंग के तैयार होने में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और हिमाचल प्रदेश के रहने वाले अर्जुन राम गोपाल उर्फ़ की दोस्ती की भी बड़ी भूमिका रही. दोनों के बीच दोस्ती 1942 में नागपुर में संघ के एक सम्मेलन में हुई थी. वाजपेयी नियमित रूप से छुट्टियां मनाने हिमाचल प्रदेश जाया करते थे. इसी दौरान, मुलाक़ातों में टशी दावा ने वाजपेयी को इस बात के लिए राज़ी कर लिया कि पहाड़ काटकर ये सुरंग बनाई जाए.
साल 2002 में वाजपेयी ने इसी दोस्ती का मान रखते हुए मनाली के बाहंग से साउथ पोर्टल सड़क मार्ग का शिलान्यास किया था. वर्ष 2000 में टनल परियोजना की घोषणा की गई. लेकिन, असल मायनों में इसकी शुरुआत साल 2010 में हुई, जब यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने 28 जून को इसका शिलान्यास किया था.
इस लिहाज़ से देखें, तो ये सुरंग राजनीतिक विवाद की नहीं, सहयोग की सुरंग है.
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