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BLOG: ‘मोदी तुझसे बैर नहीं, नीतीश तेरी ख़ैर नहीं’

Suresh Kumar

नई दिल्‍ली 05 Oct, 2020 01:04 am

''...राजनीति है भी तो बस दो ही लाइन का खेला- संभावनाओं को पकड़ो, अवसर में बदल दो.'' फेसबुक मित्र सूची में निराला बिदेसिया जी ने रामविलास पासवान जी से बातचीत के कुछ अंश का जिक्र अपने फेसबुक पेज पर किया है. यह पंक्ति वहीं से ली गई है. दरअसल लोक जनशक्ति पार्टी ने जिस बात का ऐलान किया है यही उस पार्टी की मूल प्रकृति है, मूल स्‍वभाव है. यह घोषणा रामविलास पासवान जी की दृष्टि और सोच की बिल्‍कुल परछाई है.   

भारतीय राजनीति के मौसम वैज्ञानिक कहे जाने वाले नेता रामविलास पासवान की तरफ से एक नया सियासी दांव चल दिया गया है. उनकी लोक जनशक्ति पार्टी ने बिहार विधानसभा का चुनाव अकेले लड़ने का फ़ैसला किया है. मज़े की बात ये है कि बिहार में बीजेपी-जेडी यू के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) से अलग होकर चुनाव लड़ने के बावजूद, लोक जनशक्ति पार्टी सिर्फ़ उन्हीं सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी, जहां पर, नीतीश कुमार की पार्टी के प्रत्याशी चुनाव लड़ेंगे.

लोक जनशक्ति पार्टी के इस फ़ैसले से बिहार में एक दिलचस्प राजनीतिक तस्वीर बनती दिख रही है. और इसके सूत्रधार हैं, रामविलास पासवान. वैसे तो, पासवान इस वक़्त बीमार हैं और अस्पताल में भर्ती हैं. पार्टी की कमान उनके बेटे चिराग पासवान के हाथ में है. लेकिन, इस बात का यक़ीन सबको है कि ये फ़ैसला बेटे चिराग नहीं, बल्कि पिता रामविलास पासवान ने ही लिया है.

लोक जनशक्ति पार्टी के एनडीए से अलग चुनाव लड़ने और जेडीयू के ख़िलाफ़ सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने से बिहार विधानसभा चुनाव की तस्वीर में अचानक कोई भी बदलाव आ सकता है.

राजनीतिक विश्लेषक ये अंदाज़ा लगा रहे हैं कि बिहार में असेंबली इलेक्शन के रिज़ल्ट आने के बाद, बीजेपी और लोक जनशक्ति पार्टी मिलकर सरकार बना सकती हैं. लेकिन, ये समीकरण तभी सही बैठेगा जब उनके पास सरकार बनाने लायक़ सीटें होंगी.

एक और समीकरण जिसकी संभावना जताई जा रही है, वो ये कि चुनाव के नतीजे आने के बाद, बीजेपी, लोकजनशक्ति पार्टी, उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी और एनडीए व महागठबंधन से अलग चुनाव लड़ रहे अन्य दल, निर्दलीय विधायकों के साथ मिलकर सरकार बना सकते हैं. अगर ये सब मिलकर पर्याप्त संख्‍या में सीटें ले आते हैं, तो बिहार की राजनीति में ‘सुशासन बाबू’ का दौर समाप्त हो सकता है. 

लोक जनशक्ति पार्टी, बीजेपी का एक मोहरा भी हो सकती है, ताकि वो नीतीश कुमार के साथ चुनाव लड़ कर उनका चुनावी लाभ ले ले. फिर, लोक जनशक्ति पार्टी व अन्य दलों के साथ मिलकर बिना नीतीश कुमार के सरकार बना ले.

नीतीश कुमार, जब से एनडीए का हिस्सा बने हैं, तब से वो बिहार में बड़े भाई की भूमिका में ही रहे हैं. बीजेपी को जूनियर पार्टनर के तौर पर उनके काफ़ी टैंट्रम भी उठाने पड़े हैं.

नीतीश कुमार, नरेंद्र मोदी के विरोध के नाम पर पिछले लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए से अलग हो गए थे. 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में उन्होंने अपने कट्टर राजनीतिक शत्रु लालू यादव के साथ हाथ मिलाकर सरकार बना ली थी. हालांकि, वो सरकार दो साल भी बमुश्किल चल सकी. उसके बाद नीतीश कुमार ने, आरजेडी से गठबंधन तोड़ कर वापस बीजेपी के साथ सरकार बना ली थी.

पिछले पंद्रह साल से बिहार पर राज कर रहे नीतीश कुमार, सुशासन बाबू के तौर पर भले मशहूर हों, मगर बिहार में वो बड़े पैमाने पर बदलाव लाने में असफल रहे हैं. इस साल बिहार में बाढ़ से मची भयंकर तबाही इस बात की ताज़ा मिसाल है.

वहीं, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी अब पहले से अधिक आत्मविश्वास और ताक़त से लैस है. नतीजा ये कि वो अब नीतीश कुमार की जूनियर पार्टनर नहीं बनी रहना चाहती.

बदले हुए हालात का ही नतीजा है कि इस बार, बिहार में बीजेपी और जेडी यू लगभग बराबर सीटों पर ही चुनाव लड़ेंगे. जेडी यू को सीटों के बंटवारे में केवल एक ही सीट ज़्यादा मिली है. और उसे अपने कोटे से जीतनराम मांझी के HAM को भी सीटें देनी होंगी. यानी चुनाव से पहले बीजेपी और जेडी यू भले ही अलग न हों, लेकिन बीजेपी ने अपर हैंड बना लिया है.

और, चिराग पासवान के नीतीश विरोधी रुख़ के पीछे भी बीजेपी का हाथ है, ये बात अब पर्दे में नहीं रही है.

एक दिन पहले ही गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने फ़ोन पर चिराग पासवान से बात की थी. यूं तो इसका कारण, चिराग पासवान के पिता रामविलास पासवान की सेहत के बारे में पूछना था. लेकिन, राजनीतिक इशारे भी लिए और दिए गए होंगे, इसमें किसी को शक कैसे हो सकता है.

वैसे भी लोक जनशक्ति पार्टी लगातार ये नारा दोहराती रही है-

‘मोदी तुझसे बैर नहीं, नीतीश तेरी ख़ैर नहीं’

नीतीश के ख़िलाफ़ लोक जनशक्ति पार्टी की मोर्चेबंदी बिहार में विधानसभा चुनाव की तारीख़ों का एलान होने से पहले ही हो गई थी. जब, एनडीए के पूरे कार्यकाल में अपराधों में मारे गए दलितों के परिजनों को नौकरी देने की मांग, चिराग पासवान ने की थी. जबकि, नीतीश कुमार केवल चुनावी साल में ऐसी घटनाओं में मारे गए दलित को सरकारी नौकरी देना चाहते थे.

इसके बाद पेंच फंसा सीटों के बंटवारे का. लोक जनशक्ति पार्टी ने इतनी सीटों पर चुनाव लड़ने की मांग रख दी, जिसे पूरा करना जेडी यू और बीजेपी के लिए संभव नहीं था.

वैसे भी चुनाव पूर्व एलजेपी की हर पोश्चरिंग केवल नीतीश कुमार के ख़िलाफ़ थी. 

इसकी वजह साफ है. लोक जनशक्ति पार्टी को पता है कि अकेले उसका कोई अस्तित्व बिहार में नहीं होगा. उसे किसी बड़े दल की बैसाखी चाहिए. बीजेपी की केंद्र सरकार में पासवान मंत्री हैं. और अब लोक जनशक्ति पार्टी, बिहार में अपनी बारगेनिंग बढ़ाना चाहती है. इसकी राह में नीतीश कुमार की महादलित प़ॉलिटिक्स है, जिसने पासवान की दलित पॉलिटिकल इंजीनियरिंग को काफ़ी नुक़सान पहुंचाया है.

तो, अब वक़्त आया तो पॉलिटिकल वेदर के एक्सपर्ट पासवान ने नीतीश कुमार को डायरेक्ट चैलेंज कर दिया है.

और अभी तो बिहार में चुनाव के लिए सीटों का बंटवारा ही चल रहा है. प्रचार शुरू होने के बाद, तमाम अन्य समीकरणों की तस्वीर भी उभरती दिखेगी.

वहीं, एनडीए में फूट का लाभ आरजेडी के नेतृत्व वाला महागठबंधन उठाना चाहता है. जबकि ख़ुद उसके खेमे से उपेंद्र कुशवाहा और जीतनराम मांझी जैसे नेता बाहर जा चुके हैं.

तो, अबकी बार अगर बिहार में बिना नीतीश के सरकार बने, तो इसमें कोई अचरज नहीं होना चाहिए.

क्योंकि पॉलिटिक्स में कोई भी नेता इनडिस्पेंसेबल नहीं होता है.

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