ब्रिटिश दवा कंपनी एस्ट्राज़ेनेका और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की कोविड-19 वैक्सीन का ट्रायल रोक दिया गया है. ख़ुद एस्ट्राज़ेनेका कंपनी ने एक बयान में ये जानकारी दी है. कंपनी ने बताया है कि जिन लोगों पर इस वैक्सीन का ट्रायल किया जा रहा था, उनमें से कुछ ने बीमार होने की शिकायत की थी. इसलिए वैक्सीन के साइड इफेक्ट की जांच के लिए ट्रायल को फिलहाल रोक दिया गया है. इधर भारत में भी DCGI ने इसे लेकर Serum Institute को नोटिस जारी कर दिया है.
At the @WHO RC 73 session, I offered my deepest condolences to the loss of lives in the region due to #COVID19. I also extended my heartfelt gratitude towards our frontline health workers whose efforts helped us save lives & showed our resolve even in times of greatest adversity. pic.twitter.com/TRvf3Zpyu4
— Dr Harsh Vardhan (@drharshvardhan) September 9, 2020
एस्ट्राज़ेनेका और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि, ‘ट्रायल रोकना किसी भी वैक्सीन के परीक्षण की रूटीन प्रक्रिया है. जब भी वैक्सीन लेने वाले प्रतिभागियों में किसी बीमारी की शिकायत होती है, तो ट्रायल रोके जाते हैं. और किसी भी बड़े पैमाने पर होने वाले ट्रायल में ये बातें आम हैं.’
हालांकि, कंपनी ने ये भी कहा कि वो अब अपनी वैक्सीन के इस साइड इफेक्ट को किसी विशेषज्ञ संस्था या व्यक्ति से स्वतंत्र रूप से जांच कराएगी.
एस्ट्राज़ेनेका ने ये फ़ैसला उस वक़्त किया है, जब ख़ुद उसने आठ अन्य बड़ी दवा कंपनियों के साथ मिलकर एक प्रतिज्ञा पर दस्तख़त किए थे. इन दवा कंपनियों ने कहा था कि वो कोरोना वायरस की वैक्सीन को बाज़ार में उतारने में कोई हड़बड़ी नहीं करेंगे. और तय प्रक्रिया के तहत ट्रायल पूरे होने के बाद ही किसी भी वैक्सीन को बाज़ार में उतारा जाएगा.
बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों को ऐसा वादा करने को इसलिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि कई देशों की सरकारें दवा कंपनियों पर दबाव बना रही हैं कि वो जल्द से जल्द वैक्सीन को बाज़ार में उतारें. इसके लिए वो तय प्रक्रिया का पालन करने को भी तैयार नहीं हैं.
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इसकी मिसाल हैं, जो लगातार ये कह रहे हैं कि उनकी सरकार नवंबर महीने की शुरुआत में अमेरिकी जनता को कोविड-19 के टीके लगाना शुरू कर देगी. असल में नवंबर में अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं. ट्रंप इससे पहले वैक्सीन को लॉन्च करके उसका राजनीतिक लाभ लेना चाहते हैं.
लेकिन, अमेरिका में दवाओं और वैक्सीन के लाइसेंस जारी करने वाले फूड ऐंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) के प्रमुख ने कहा है कि अगर राष्ट्रपति ट्रंप उन पर वैक्सीन को बिना तय प्रक्रिया पूरी किए हुए परमिशन देने का दबाव बनाएंगे, तो वो अपने पद से इस्तीफ़ा दे देंगे.
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राज़ेनेका द्वारा विकसित कोरोना वैक्सीन, ह्यूमन ट्रायल शुरू करने वाली दुनिया की पहली वैक्सीन थी. अमेरिका और ब्रिटेन समेत कई देश, इस वैक्सीन की करोड़ों डोज़ की एडवांस बुकिंग कर चुके हैं.
इस वैक्सीन का भारत में भी ट्रायल शुरू हो गया है. पुणे में स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया, एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन का पार्टनर है. चूंकि भारत दुनिया भर में वैक्सीन का सबसे बड़ा निर्माता है, इसलिए, तमाम देश वैक्सीन के अधिक उत्पादन के लिए इंडिया को पार्टनर बनाना चाहते हैं. हालांकि भारत में भी DCGI ने इसे लेकर Serum Institute को नोटिस जारी कर दिया है.
📢#CoronaVirusUpdates:
— #IndiaFightsCorona (@COVIDNewsByMIB) September 9, 2020
📍#COVID19 India Tracker
(As on 9 September, 2020, 08:00 AM)
➡️Confirmed cases: 43,70,128
➡️Recovered: 33,98,844 (77.8%)👍
➡️Active cases: 8,97,394 (20.5%)
➡️Deaths: 73,890 (1.7%)#IndiaFightsCorona#IndiaWillWin#StaySafe
Via @MoHFW_INDIA pic.twitter.com/zyV5aSylqA
रूस ने अपने यहां जिस स्पुतनिक कोरोना वैक्सीन की डोज़ देनी शुरू की है, उसमें भारत को भी पार्टनर बनाने का प्रस्ताव दिया है. ताकि इस वैक्सीन का अधिक से अधिक उत्पादन कर के अन्य देशों को भी दिया जा सके. रूस चाहता है कि भारत अपने यहां उसकी स्पुतनिक वैक्सीन का फेज़ थ्री ट्रायल करे. और इसके बाद दोनों देश मिलकर कोरोना के इस टीके का अधिक से अधिक उत्पादन करें. जिसे बाद में अन्य देशों को दिया जा सके.
भारत सरकार ने रूस के इस प्रस्ताव को लेकर कई दवा कंपनियों से संपर्क किया है.
ख़ुद इंडिया ने भी कोरोना की अपनी वैक्सीन के दो राउंड के ट्रायल कर लिए हैं. हालांकि DCGI से Serum Institute को नोटिस मिलने के बाद यहां भी जांच रोक दी गई है.
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