चुनाव से पहले हर राजनीतिक पार्टी बड़ी-बड़ी बाते और वादे करती हैं. लोगों के अधिकारों की लड़ाई लड़ने की बात की जाती है, लेकिन सत्ता में आने के बाद गांधी की तरह बात करने वाले नेताओं के तेवर ही बदल जाते हैं. चुनाव से पहले रोजगार को लेकर गंभीरता दिखाने वाली पार्टियां, सत्ता में आने के बाद युवाओं की एक नहीं सुनती. धरना प्रदर्शन होते हैं, लाठियां चलती हैं लेकिन सत्ता में बैठे नेता यूं शांत रहते हैं जैसै किसी तपस्या में लीन हों. आज हम एक ऐसी भर्ती का मुद्दा लेकर आए हैं, जिसको लेकर नेताओं ने कई वादे किए, रैलियां की, लेकिन जब सत्ता में आए तो उन्हीं युवाओं को ठोकरे खाने के लिए छोड़ दिया. यूपी में परिषदीय उच्च प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत अनुदेशक मानदेय बढ़वाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. साल 2017 में सरकार ने अनुदेशकों का मानदेय 17 हजार करने का ऐलान किया. केंद्र की ओर से इसका अप्रूवल भी मिल गया. बीजेपी यूपी और सीएमओ यूपी ने इसका प्रचार प्रसार भी किया. लेकिन अनुदेशकों को कभी 17 हजार रुपये मानदेय के रूप में नहीं मिला. इतना ही नहीं कोर्ट के आदेश के बाद भी सरकार 17 हजार रुपये मानदेय का भुगतान नहीं कर रही है. फिलहाल अनुदेशकों को पहली की तरह 7,000 रुपये प्रतिमाह मानदेय मिल रहा है. हैरानी की बात तो यह है कि जब यूपी में बीजेपी विपक्ष में थी तो बीजेपी के कई नेताओं ने इन अनुदेशकों का मानदेय बढ़ाने की मांग की थी, लेकिन सत्ता में आने के बाद इनका मानदेय बढ़ाने की जगह अखिलेश सरकार में बढ़ाई गई रकम को भी घटा दिया गया, साथ ही अनुदेशकों से इसकी रिकवरी कर ली गई.
पूर्व माध्यमिक अनुदेशक कल्याण समिति उ०प्र० के अध्यक्ष राकेश पटेल ने करियर 16 प्लस से बातचीत में अनुदेशकों की भर्ती से लेकर उनके संघर्ष की पूरी कहानी बताई. राकेश पटेल कहते हैं, ''हम अनुदेशकों की नियुक्ति सत्र 2013 में शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 के अंतर्गत 13,769 विद्यालयों में कुल 41,307 पद पर विषयवार (स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा, कला शिक्षा, कार्यानुभव शिक्षा) के पद पर मानदेय रु 7000 पर की गई. सत्र 2016-17 में काफी संघर्ष के बाद हमारे मानदेय बढ़ोत्तरी का प्रस्ताव तत्कालीन बेसिक शिक्षा प्रमुख सचिव आशीष गोयल जी द्वारा केंद्र सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के प्रोजेक्ट अप्रूवल बोर्ड (PAB) की बैठक में ले जाया गया. केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी और राज्य में समाजवादी पार्टी की इसलिए सर्व शिक्षा अभियान के बजट में भारी कटौती हुई लेकिन हम अनुदेशकों का मानदेय 1470 रुपये बढ़ा और MHRD से आदेश की कॉपी आते ही सभी को 8,470 मानदेय के रूप में मिलने लगा.''
राकेश कहते हैं, ''सत्र 2017-18 में संगठन के अथक प्रयास से तत्कालीन प्रमुख सचिव बेसिक अजय कुमार सिंह द्वारा PAB में हम अनुदेशकों के मानदेय का प्रस्ताव 17,000 रुपये का ले जाया गया जो कि 23 मार्च 2017 को स्वीकृत हो गया. आदेश की कॉपी आने के बाद भी सरकार में बैठे कुछ अफसरों द्वारा राज्य कार्यकारणी की 51वीं बैठक करके मानदेय 17,000 को जबरजस्ती नियमविरुद्ध बदल कर 9,800 करने का निर्णय लिया. इसके बाद हम कोर्ट गए. हमने कई बार धरना दिया, लाठियां भी खाई लेकिन परिणाम जस का तस रहा और हम सबको 8,470 रुपये मानदेय के रूप में मिलता रहा. इसके बाद हमने अपना अधिकार पाने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और 3 जुलाई 2019 को खंडपीठ लखनऊ से और 20 अगस्त 2019 को खंडपीठ इलाहाबाद से 17,000 रुपये मानदेय, 9% ब्याज के साथ करने का आदेश दिया गया. लेकिन हद तो तब हो गयी जब 17,000 का भुगतान न देकर 15 जुलाई 2019 को भुगतान हो रहे 8,470 रुपये में से भी 1,470 रुपये की कटौती करते हुए पुनः मानदेय 7,000 रुपये कर दिया गया व मार्च 2018 से दिसम्बर 2018 तक 13,230 रुपये की रिकवरी की गई.''
राकेश आगे बताते हैं, ''अभी 8 सितंबर को मुख्य सचिव महोदय को न्यायालय ने नोटिस जारी करते हुए मानदेय 17000 रुपये का भुगतान न करने पर व्यक्तिगत तौर पर उपस्थित होने का आदेश दिया है. मेरा राज्य सरकार से निवेदन है कि जब आप 7वें वेतनमान का न्यूनतम वेतनमान किसी भी व्यक्ति को जीवन व्यापन के लिए 18,000 निर्धारित किए हैं तो फिर पिछले 8 सालों से देश के बच्चों का भविष्य बनाने वाले हम अनुदेशकों को इतना कम मानदेय क्यों दिया जा रहा है? इतने अल्प मानदेय में हम सब परिवार को कैसे चलाएंगे? इसलिए 17,000 रुपये मानदेय का आदेश जारी कर तत्काल हम सबको हमारे पद पर नियमित करें.''
कई बार धरना दिया, नेताओं से मुलाकात की मगर किसी ने नहीं सुनी
अनुदेशकों ने कई बार धरना दिया. कई नेताओं और मंत्रियों से मुलाकात की, उनसे विनती की लेकिन किसी ने इनकी एक न सुनी. 10 सितंबर 2018 को लखनऊ की सड़कों पर जमकर प्रदर्शन हुआ था. इसके अलावा 22 जुलाई 2019 राज्य परियोजना कार्यालय(समग्र शिक्षा अभियान) विद्याभवन निशांतगंज, लखनऊ के बाहर भी काफी प्रदर्शन हुआ. लेकिन इन प्रदर्शनों का सरकार पर कोई असर नहीं दिखा..
अधिकार दिलाओं रैली करने वाली बीजेपी ने सत्ता में आते ही छीन लिए अधिकार
यूपी के 17 लाख संविदा कर्मियों को अधिकार दिलाने के लिए 3 अप्रैल 2016 को भाजपा ने राजधानी लखनऊ में अधिकार दिलाओ रैली निकाली थी. इस रैली को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जो कि तब गृह मंत्री थे उन्होंने संबोधित किया था. राजनाथ सिंह ने कहा था कि संविदाकर्मियों के लिए नीति और मानदंड क्या हों, राज्य सरकार को इस पर फैसला करना चाहिए. कोई संगठन ज्यादा मांग कर सकता है, उनके प्रतिनिधियों को बुलाकर बात करें. कोशिश करनी चाहिए उन्हें सम्मानजनक जिंदगी जीने लायक पैसा दिया जाए. बता दें कि झूलेलाल मैदान में आयोजित इस रैली में मुख्य अतिथि गृहमंत्री राजनाथ सिंह थे.
केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने 2016 में लखनऊ में अधिकार दिलाओं रेली की थी. उन्होंने कहा था- संविदाकर्मियों को सम्मानजनक जिंदगी जीने लायक पैसा दिया जाए. लेकिन सत्ता में आने के बाद अनुदेशकों का मानदेय घटाकर अधिकार दिलाने की बात करने वालों ने ही अधिकार छीन लिया. #anudeshakmange17000 pic.twitter.com/tacVw6AncU
— Archit Gupta (@Architguptajii) October 6, 2020
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