कोरोना के आने के बाद से सरकारों के खिलाफ हो रहे कई आंदोलन शांत हो गए. CAA, NRC को लेकर जहां प्रदर्शन खत्म हो गए वहीं युवाओं में रोजगार को लेकर काफी गंभीरता दिखी. रेलवे और SSC के छात्रों के ट्विटर आंदोलन के बाद अब देश के हर कोने में वैकेंसी, रिजल्ट और नियुक्ति को लेकर परेशान युवा ट्विटर पर विरोध जता रहे हैं. लेकिन जब बात ट्विटर पर नहीं बनी तो युवाओं ने कोरोना काल में प्रदर्शन करने का मन बना लिया. ग्राम पंचायत अधिकारी 2018 के उम्मीदवारों ने लखनऊ में नियुक्ति की मांग को लेकर प्रदर्शन किया. UPSSSC VDO 2018 भर्ती के उम्मीदवार काफी समय से नियुक्ति को लेकर संघर्ष कर रहे हैं. इन उम्मीदवारों का डीवी हो गया है लेकिन योगी सरकार ने SIT जांच के नाम पर भर्ती को अटका रखा है. जब ट्विटर पर बात बनती नजर नहीं आई तो उम्मीदवार 22 सितम्बर को पिकअप भवन लखनऊ के बाहर प्रदर्शन करने पहुंचे, मगर पुलिस ने इन्हें यहां से खदेड़ दिया. इसके बाद उम्मीदवार 1090 चौराहे पर पहुंचे तो यहां भी तैनात पुलिस बल ने इन्हें प्रदर्शन करने से रोका और इको गार्डन छोड़ दिया.
#ग्रामपंचायतअधिकारी2018 के उम्मीदवार नियुक्ति की मांग को लेकर UPSSSC दफ्तर पहुंचे तो पुलिस ने उन्हें वहां से खदेड़ दिया. उम्मीदवार 1090 चौराहे पर पहुंचे वहां भी यही हुआ और पुलिस ने इन्हें इको गार्डन पहुंचा दिया. @myogiadityanath
— Archit Gupta (@Architguptajii) September 25, 2020
जी क्या लोकतंत्र में प्रदर्शन करना गुनाह है? pic.twitter.com/y0U9kkkMcD
नियु्क्ति के लिए 1900 से ज्यादा उम्मीदवार भटक रहे हैं, लेकिन सरकार न ही नियुक्ति दे रही और न ही लोकतांत्रिक देश में विरोध जताने का अधिकार. युवाओं को प्रदर्शन करने से रोकना यह साफ दर्शाता है योगी सरकार को विरोध बर्दाश्त नहीं होता. क्या लोकतांत्रिक देश में रोजगार की मांग करते हुए प्रदर्शन करना गुनाह है?
खैर एक नजर इस भर्ती पर डाल लेते हैं, उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (UPSSSC) की ग्राम पंचायत अधिकारी (VDO) की भर्ती साल 2018 में निकाली गई थी. इस भर्ती की लिखित परीक्षा का रिजल्ट 28 अगस्त 2019 को जारी किया गया था. लिखित परीक्षा के बाद उम्मीदवारों का डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन होना था. लेकिन रिजल्ट के बाद आज तक आयोग सभी उम्मीदवारों का डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन नहीं करा सका. अगस्त 2019 में रिजल्ट आने के बाद से उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन ने एक के बाद एक कई कैलेंडर जारी किए और हर बार डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन की तारीख आगे बढ़ाता रहा. अंत में उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (UPSSSC) ने 29 फरवरी 2020 को एक नोटिस जारी करता है. इस नोटिस में कहा गया कि 1553 उम्मीदवारों का डीवी 12 मार्च से 2 जून तक कराया जाएगा. बाकी बचे 399 उम्मीदवारों का डीवी जांच के बाद होगा.
12 मार्च से 18 मार्च तक 4 दिन ही डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन हुआ, हर दिन करीब 30 उम्मीदवारों को बुलाया गया. अधिकतर स्टूडेंट्स का लॉकडाउन के कारण डीवी नहीं हो सका. इसी बीच भर्ती पर लगे धांधली के आरोप की चांज सरकार ने एसआईटी को सौंप दी. सरकार के कैबिनेट मंत्री राजेंद्र प्रसाद सिंह उर्फ मोती सिंह ने इस भर्ती पर धांधली का आरोप लगाते हुए इसे रद्द करने की मांग की थी. अब मामला SIT के पास है जिसके कारण भर्ती अटकी हुई है.
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तो आप समझ ही गए होंगे कि उत्तर प्रदेश में कैसे एक भर्ती को पंचवर्षीय योजना बनाया जा रहा है. अगर योगी सरकार विरोध की आवाज को बर्दाश्त नहीं कर सकती तो इन उम्मीदवारों को नियुक्ति देकर इनसे दुआएं ही ले ले. मोदी जी ने आत्मनिर्भर उत्तर प्रदेश का नारा दिया, सवा करोड़ लोगों को रोजगार की सौगात दी गई लेकिन दूसरी और UPSSSC की 24 भर्तियां अटकी हुई हैं. उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड देश का एकलौता ऐसा आयोग है जिसकी सबसे ज्यादा भर्तियां अटकी हुई हैं. जब उम्मीदवारों का विरोध तेज होता है तो हर बार यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ एक समीक्षा बैठक बुलाकर अधिकारियों से अटकी हुई भर्तियों को जल्द से जल्द पूरा करने को कह देते हैं, लेकिन उसके कई महीनों तक न ही आयोग कोई परीक्षा का कराता है, न रिजल्ट और न ही नियुक्ति देता है. तो क्या आयोग के अधिकारियों के लिए मुख्यमंत्री के आदेश की कोई वैल्यू नहीं है या सरकार ही अगले चुनाव तक भर्तियों को अटकाना चाहती है?
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