अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो इस समय मध्य-पूर्व देशों के दौरे पर हैं. उनका मक़सद, उस समझौते के हक़ में माहौल बनाना है, जो अमेरिका की मदद से हुआ है. और, जिस समझौते को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, चुनावी साल में अपनी एक और उपलब्धि कह कर प्रचारित कर रहे हैं.
24 अगस्त को माइक पॉम्पियो ने अपने विशेष विमान से ट्वीट किया कि वो इस वक़्त इज़राइल से सूडान की पहली आधिकारिक नॉनस्टॉप फ्लाइट में सवार हैं.
Happy to announce that we are on the FIRST official NONSTOP flight from Israel to Sudan! pic.twitter.com/eOXNsBAozC
— Secretary Pompeo (@SecPompeo) August 25, 2020
पॉम्पियो का ये ट्वीट, असल में उस समझौते की तारीफ़ में क़सीदा पढ़ने जैसा था, जिसके प्रचार के लिए वो पहले इज़राइल गए. फिर वहां से सूडान के लिए सीधी उड़ान भरी. इस दौरे में अमेरिकी विदेश मंत्री का आख़िरी पड़ाव होगा, संयुक्त अरब अमीरात.
असल में पॉम्पियो, इज़राइल और संयुक्त अरब अमीरात के बीच अब्राहम एकॉर्ड्स #AbrahamAccords के लिए समर्थन जुटाने की कोशिश में इस दौरे पर निकले हैं. मगर, ये समझौता होने के साथ ही खटाई में पड़ता नज़र आ रहा है.
पहले आपको ताज़ा कहानी का दो हफ़्ते पुराना अपडेट जान लेना चाहिए.
13 अगस्त को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एलान किया कि इज़राइल और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) आपसी संबंधों को सामान्य बनाने जा रहे हैं. जानकारों ने ट्रंप के इस एलान को, यहूदी देश इज़राइल और उसके मुस्लिम अरब पड़ोसियों के बीच दशकों पुराने संकट के समाधान की दिशा में बढ़ा हुआ बहुत बड़ा क़दम बताने में देर नहीं की. वैसे, संयुक्त अरब अमीरात कोई पहला अरब देश नहीं जिसने इज़राइल के साथ गलबहियां शुरू की हों. उससे पहले मिस्र और जॉर्डन ये क़दम उठा चुके हैं. 1979 में इजिप्ट ने इज़राइल के साथ औपचारिक रूप कूटनीतिक संबंध स्थापित किए थे. तो, जॉर्डन ने 1994 में इस दिशा में क़दम बढ़ाया था.
इज़राइल को सऊदी अरब समेत कई देश मान्यता नहीं देते. उनका मानना है कि इज़राइल ने फ़िलिस्तीन की शक्ल में एक अरब मुस्लिम देश पर क़ब्ज़ा किया हुआ है. इस वजह से इज़राइल और अरब देशों में तीन बड़े युद्ध भी हो चुके हैं.
मगर, 1973 के योम किप्पुर युद्ध के बाद से कुछ अरब देशों ने इज़राइल के साथ संबंध सामान्य करने की दिशा में क़दम बढ़ाए हैं.
वैसे तो, इज़राइल और संयुक्त अरब अमीरात लंबे समय से गुप्त रूप से आपस में सहयोग करते रहे हैं. दोनों ही देशों के बीच कई वर्षों से तमाम विषयों पर परिचर्चा और राजनीतिक वार्ताएं होती आ रही थीं. 2018 में इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू ने ओमान का दौरा किया था. दोनों देशों को क़रीब लाने में इज़राइल की ख़ुफ़िया एजेंसी मोसाद के प्रमुख योसी कोहेन ने बड़ी भूमिका निभाई थी. बेंजामिन नेतान्याहू के ओमान दौरे से ये बात बिल्कुल साफ़ हो गई थी कि इज़राइल और उसके अरब पड़ोसी देशों के बीच संबंध सुधार की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. हाल ही में कोविड-19 की महामारी के दौरान, इज़राइल ने एलान किया था कि वो संयुक्त अरब अमीरात के साथ मिल कर इस बीमारी की वैक्सीन विकसित करने में लगा हुआ है. हालांकि, तब UAE ने इज़राइल के इस बयान से पल्ला झाड़ लिया था. क्योंकि, इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू, फिलिस्तीन के वेस्ट बैंक इलाक़े को इज़राइल में मिलाने की कोशिश कर रहे थे. और उस समय इज़राइल में चुनाव भी होने वाले थे. लेकिन, अब जबकि इज़राइल और संयुक्त अरब अमीरात से खुल कर संबंध सामान्य बनाने की घोषणा कर दी है. तो, साफ़ है कि दोनों देशों के बीच गुप्त रूप से लंबे वक़्त से वार्ता चल रही थी.
इसमें कोई दो राय नहीं है कि मध्य पूर्व की उठा-पटक भरी राजनीति में संयुक्त अरब अमीरात और इज़राइल का क़रीब आना एक स्वागत योग्य क़दम है. लेकिन, दोनों देशों ने संबंध सामान्य बनाने की घोषणा जिस समय की, वो भी बहुत महत्वपूर्ण है. इस साल नवंबर महीने में होने जा रहे अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव न केवल निर्णायक होंगे, बल्कि बेहद विभाजनकारी भी होंगे. खाड़ी के शाही शासकों के लिए ट्रंप एक वरदान साबित हुए हैं. ऐसा इज़राइल के बारे में भी कहा जा सकता है. ईरान के प्रति बेहद सख़्त रुख़ अपनाकर ट्रंप ने तमाम अरब शासकों को अपना मुरीद बना लिया है. इसे देखते हुए ही अरब देशों और इज़राइल ने आपसी संबंधों को सामान्य बनाने की दिशा में भी क़दम उठाए हैं. और अब जो संवाद वो गुप-चुप कर रहे थे, उसे खुल कर करने में इज़राइल और अरब देशों को कोई परहेज़ नहीं रहा.
और अब फास्ट फॉरवर्ड करके इज़राइल और UAE की ताज़ा ख़बर पर आते हैं.
अभी इज़राइल और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के बीच समझौता हुए दस दिन भी नहीं हुए थे, कि दोनों देशों ने एक दूसरे से मुंह भी फुला लिया है.
संयुक्त अरब अमीरात ने दो दिन पहले ही, इज़राइल और अमेरिका के साथ एक साझा वार्ता को रद्द कर दिया.
अमेरिकी वेबसाइट axios ने ख़बर दी कि संयुक्त अरब अमीरात ने इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू से नाराज़ होकर ये त्रिपक्षीय बातचीत रद्द की है. और ये नाराज़गी इस बात को लेकर है कि इज़राइल ने संयुक्त अरब अमीरात के अमेरिका से F-35 फाइटर प्लेन ख़रीदने के सौदे पर अड़ंगा लगा दिया है.
इज़राइल और संयुक्त अरब अमीरात के बीच समझौते के पांच दिन बाद ही डोनाल्ड ट्रंप ने घोषणा की थी कि अमेरिका, बहुत जल्द UAE को अपने F-35 फाइटर प्लेन बेचने जा रहा है. व्हाइट हाउस में 19 अगस्त कोई हुई प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि, ‘उनके पास काफ़ी पैसे हैं और वो कई F-35 प्लेन ख़रीदने में दिलचस्पी रखते हैं. क्योंकि ये दुनिया का सबसे शानदार फाइटर प्लेन है. क्योंकि उनकी स्टेल्थ ताक़त का कोई जवाब नहीं.’
मगर, ट्रंप की प्रेस कांफ्रेंस के अगले ही, दिन इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू ने कहा कि वो इस बारे में अमेरिकी कांग्रेस के सदस्यों बात करेंगे. क्योंकि, उन्हें तो ऐसे किसी समझौते की जानकारी नहीं है. नेतान्याहू के इस बयान को, अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात के बीच फाइटर प्लेन की डील के प्रति नाराज़गी जताना बताया गया.
इसके बाद, अमेरिकी अधिकारियों ने मीडिया में सूत्रों के हवाले से ख़बर फैलायी कि संयुक्त अरब अमीरात को F-35 विमान बेचने के सौदे में इज़राइल के हितों का पूरा ध्यान रखा जाएगा.
यूं तो अमेरिका, इससे पहले भी अरब देशों को हथियार बेचता रहा है. मगर, अमेरिका की नीति यही रही है कि अरब देशों को ऐसे हथियार न बेचे जाएं, जिनसे इस क्षेत्र में इज़राइल की ताक़त को कोई अरब देश चुनौती दे सके.
संयुक्त अरब अमीरात ने इज़राइल से ये समझौता इसलिए किया था, ताकि वो अमेरिका से अत्याधुनिक हथियार ख़रीद सके. लेकिन, इस समझौते के बाद पहले ही सौदे में इज़राइल ने जिस तरह टांग अड़ाई है, उससे चर्चित अब्राहम समझौता ख़तरे में पड़ता नज़र आ रहा है. और इसीलिए, पॉम्पियो फ़ौरन इज़राइल और संयुक्त अरब अमीरात के बीच पैच अप कराने के लिए निकल पड़े.
Delighted to be in Israel following the announcement of the Abraham Accords. This historic diplomatic breakthrough will advance peace in the Middle East and is a testament to the vision of @IsraeliPM @netanyahu, Crown Prince @MohamedBinZayed, and President @realDonaldTrump. pic.twitter.com/1LF4sZUGzt
— Secretary Pompeo (@SecPompeo) August 24, 2020
अरब देश और इज़राइल, दोनों ही ईरान को अपना दुश्मन मानते हैं. और, अमेरिका की ईरान विरोधी नीति के चलते ही, उसके कहने पर संयुक्त अरब अमीरात ने इज़राइल से दोस्ती करने के लिए हामी भरी थी.
मगर, एक सच ये भी है कि संयुक्त अरब अमीरात, इज़राइल और अमेरिका के दुश्मन देश ईरान से भी सीधा संबंध रखता है. ये मध्य पूर्व के एक अन्य देश ओमान के रवैये से काफ़ी मिलता जुलता है. ओमान भी मध्य पूर्व के कूटनीतिक समीकरणों में ख़ुद को किसी एक खेमे से जोड़ने से बचता रहा है. इसी साल जून में संयुक्त अरब अमीरात ने कोविड-19 से लड़ने के लिए ईरान को विमानों से राहत सामग्री की कई खेपें भेजी थीं. जबकि, ईरान शिया बहुल देश है और संयुक्त अरब अमीरात सुन्नी मुसलमानों का मुल्क माना जाता है. 2 अगस्त को ही ईरान और संयुक्त अरब अमीरात के विदेश मंत्रियों ने आपस में वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिए बातचीत की थी.
यानी, इज़राइल से संबंध सामान्य करने से पहले से ही UAE के ईरान से भी अच्छे संबंध थे.
ऐसे में, संयुक्त अरब अमीरात को यक़ीन था कि इज़राइल से कूटनीतिक संबंध क़ायम होने के बाद, वो अमेरिका से अत्याधुनिक हथियार हासिल कर सकेगा.
मगर, जैसा कि कहावत है-प्रथम ग्रासे मच्छिका पात या सिर मुंडाते ही ओले पड़ना. तो, संयुक्त अरब अमीरात के पहले ही दांव पर इज़राइल ने टांग अड़ा दी.
शायद इसकी वजह ये भी रही हो कि इज़राइल, संयुक्त अरब अमीरात के प्रिंस मुहम्मद बिन ज़ायद पर दबाव बनाना चाह रहा हो कि वो ईरान से ताल्लुक़ ख़त्म कर लें.
हालांकि, इससे क्षेत्र की सभी ताक़तों से संबंध रखने की प्रिंस ज़ायद की नीति पटरी से उतर जाएगी. इसलिए, इज़राइल ने UAE के फाइटर प्लेन ख़रीदने पर अड़ंगा लगाया. तो, संयुक्त अरब अमीरात ने इज़राइल और अमेरिका के साथ बातचीत कैंसिल कर दी.
Pleasure to meet with Bahraini Foreign Minister Abdullatif bin Rashid Al-Zayani after my arrival in Manama today. The U.S. has a long partnership with Bahrain and we look forward to continuing our important work to build peace and prosperity in the region. pic.twitter.com/dXBM6Cres6
— Secretary Pompeo (@SecPompeo) August 25, 2020
अब देखना ये होगा कि इज़राइल से सूडान की सीधी उड़ान भरने वाले माइक पॉम्पियो, संयुक्त अरब अमीरात की नाराज़गी दूर कर पाते हैं या नहीं.
अगर, ऐसा नहीं हो पाता तो ईरान की घेरेबंदी का इज़राइल-अमेरिका का प्लान खटाई में पड़ सकता है.
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