दुनिया का इकलौता सुपर पावर देश, अमेरिका आज अपना नया राष्ट्रपति चुनेगा. हालांकि मैदान में जो दो उम्मीदवार आमने-सामने हैं, वो नए तो बिल्कुल नहीं हैं. एक तरफ़ रिपब्लिकन पार्टी ने मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को अपना उम्मीदवार बनाया है तो, दूसरी तरफ़ डेमोक्रेटिक पार्टी ने जो बाइडेन को राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाया है, जो बराक ओबामा के शासन काल में उप-राष्ट्रपति रहे थे.
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के लिए नवंबर के पहले मंगलवार को वोट डाले जाते हैं जो इस बार तीन नवंबर को है. हालांकि, अमेरिका में कोरोना वायरस की महामारी के कारण इस बार क़रीब 7.5 करोड़ लोगों ने पोस्टल बैलट से अपने वोट डाल दिए हैं. तीन नवंबर को पोलिंग बूथ पर मतदान शुरू होने के साथ ही नतीजे आने भी शुरू हो जाएंगे. क्योंकि, भारत के उलट अमेरिका में मतदान के साथ साथ वोटों की गिनती भी शुरू हो जाती है.
राष्ट्रपति के साथ साथ अमेरिका उप-राष्ट्रपति का भी चुनाव करता है. इन्हें उम्मीदवारों के रनिंग मेट कहा जाता है. डोनाल्ड ट्रंप ने मौजूदा उप-राष्ट्रपति माइक पेंस को अपना रनिंग मेट बनाया है, तो जो बाइडेन ने भारतीय मूल की कमला हैरिस को उप-राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाया है.
इस बार के राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी और रिपब्लिकन पार्टी के बीच कांटे का मुक़ाबला होने की संभावना जताई जा रही है. हालांकि, लोकप्रिय वोट्स में जो बाइडेन, ट्रंप से आगे चल रहे हैं. लेकिन, अमेरिका में राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया इतनी पेचीदा है कि सिर्फ़ जनता के पॉपुलर वोट ज़्यादा हासिल कर लेने भर से कोई राष्ट्रपति नहीं बन सकता. अमेरिका में राष्ट्रपति के चुनाव के लिए इलेक्टोरल कॉलेज की व्यवस्था है. अमेरिका के 50 राज्यों में कुल 538 सदस्यों का इलेक्टोरल कॉलेज होता है. किसी को राष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए, इलेक्टोरल कॉलेज के कम से कम 270 वोट चाहिए होते हैं.
ऐसा कई बार हुआ है कि जनता का वोट ज़्यादा हासिल करने वाले भी इसलिए हार गए, क्योंकि वो इलेक्टोरल कॉलेज के 270 वोट हासिल नहीं कर सके. हालिया इतिहास में ऐसा दो बार हुआ है. पहले, साल 2000 में डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार अल्बर्ट गोर को जनता के वोट ज़्यादा मिले थे. लेकिन, इलेक्टोरल कॉलेज ने जॉर्ज डब्ल्यू बुश को राष्ट्रपति चुना. सबसे ज़्यादा विवाद फ्लोरिडा राज्य के वोट के लिए हुआ था. क्योंकि आम तौर पर डेमोक्रेटिक पार्टी का गढ़ माने जाने वाले फ्लोरिडा के इलेक्टोरल कॉलेज ने जॉर्ज डब्ल्यू बुश को राष्ट्रपति चुना था. ये मामला अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट में भी गया था. जिसमें फ़ैसला बुश के हक़ में गया.
इसके बाद साल 2016 में भी डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन को जनता के वोट डोनाल्ड ट्रंप से ज़्यादा मिले थे. लेकिन, इलेक्टोरल कॉलेज के मैदान में ट्रंप ने बाज़ी मार ली थी.
हालांकि, इस बार मामला कुछ और ही पेचीदा है. डोनाल्ड ट्रंप ऐसे संकेत दे रहे हैं कि अगर चुनाव में वो नहीं जीते, तो वो नतीजों को स्वीकार करने से इनकार कर सकते हैं. ऐसी सूरत में मामला अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट में जा सकता है. और वहां पर रिपब्लिकन पार्टी के समर्थक जजों का बहुमत है.
यहां भी एक पेंच है. अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति उम्र भर के लिए होती है और वो किसी एक पार्टी के समर्थक भी हो सकते हैं. अभी दो महीने पहले अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट की एक जज का देहांत हो जाने के बाद, ट्रंप ने ऐसी महिला को सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया है, जो रिपब्लिकन पार्टी की रुढ़िवादी विचारधारा की समर्थक मानी जाती हैं. यानी मामला सुप्रीम कोर्ट में गया, तो जो बाइडेन पर ट्रंप बाज़ी मार सकते हैं.
अमेरिका में नवंबर के पहले मंगलवार को चुनाव ज़रूर होता है. मगर नया राष्ट्रपति अगले साल 20 जनवरी को ही शपथ लेता है. ऐसा इसलिए किया गया है, क्योंकि आज दो सदी पहले तक सभी इलाक़ों से वोटों की गिनती के नतीजे आने में देर होती थी. फिर, किसी क़ानूनी विवाद से निपटने के लिए भी पर्याप्त समय की व्यवस्था की गई है.
अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव पर पूरी दुनिया की नज़रें होती हैं. क्योंकि, अमेरिका एक महाशक्ति है और दुनिया के कई बड़े फ़ैसले उसी पर निर्भर होते हैं. अमेरिकी चुनाव के नतीजों का असर भारत पर भी पड़ेगा. लेकिन, ये नेगेटिव होगा या पॉज़िटिव, ये इस बात पर निर्भर करेगा कि चुनाव जीतता कौन है.
इसके अलावा यूरोपीय संघ, रूस और चीन भी अमेरिकी चुनाव पर नज़र बनाए हुए हैं. पिछले चार वर्षों के दौरान ट्रंप ने जिस तरह से विश्व व्यवस्था में उथल पुथल मचाई है, उससे बहुत से देश नहीं चाहते कि ट्रंप चुनाव जीतें. लेकिन, ट्रंप का कार्यकाल भारत के हित में रहा है. दोनों देश सामरिक तौर पर एक-दूसरे के क़रीब आए हैं.
चीन को लेकर ट्रंप के कड़े रुख़ का फ़ायदा भारत को हुआ है और अब दोनों देशों ने मिलकर चतुर्भुज एलायंस (QUAD) में ऑस्ट्रेलिया को भी शामिल कर लिया है ताकि, इंडो पैसिफिक इलाक़े में चीन के बढ़ते वर्चस्व को मिल जुलकर चुनौती दी जा सके.
वैसे, ट्रंप ने चीन को लेकर इतना कड़ा रवैया अपना लिया है कि जो बाइडेन चाहकर भी चीन के प्रति नरम रवैया अख़्तियार नहीं कर पाएंगे. हां, अगर जो बाइडेन चुनाव जीतते हैं, तो ट्रंप जैसी बयानबाज़ी देखने को नहीं मिलेगी.
अब देखना ये होगा कि 20 जनवरी 2021 को डोनाल्ड ट्रंप दोबारा राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे, या जो बाइडेन.
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