Utpanna Ekadashi 2020: हिन्दू धर्म में यूं तो सभी एकादशियों का बड़ा महात्म्य है, लेकिन उत्पन्ना एकादशी (Utpanna Ekadashi) का विशेष महत्व है. दरअसल, उत्पन्ना एकादशी से ही एकादशी (Ekadashi) के व्रत की शुरुआत मानी जाती है. सभी एकादशियों का व्रत मां एकादशी (Maa Ekadashi) को समर्पित है. मां एकादशी भगवान विष्णु की शक्तियों में से एक हैं. मुर नामक राक्षस के संहार के लिए ही भगवान विष्णु से मां एकादशी का जन्म हुआ था. यह वही मुर राक्षस था जो सोते हुए श्री हरि विष्णु को मार देना चाहता था. यही वजह है कि मां एकादशी को भगवान विष्णु की रक्षा करने वाली शक्ति के रूप में भी जाना जाता है. आपको बता दें कि मां वैष्णवी भी भगवान विष्णु की एक अन्य शक्ति हैं और वह सप्त मातृका (Sapt Matrika) का अंग हैं. सप्त मातृका अर्थात् सात देवियां हैं. ये सात देवियां ब्रह्माणी, वैष्णवी, माहेश्वरी, ऐन्द्री, कौमारी, वाराही और नारसिंही हैं. शुंभ और निशुंभ राक्षसों से लड़ते समय देवी की सहायता के लिए सभी देवो ने अपनी-अपनी सात शक्तियां भेजी थीं. यह सात शक्तियां ही सप्तमातृकाएं हैं.
उत्पन्ना एकादशी का महत्व
मार्गशीर्ष की 11वीं तिथि को ही एकादशी की उत्पत्ति हुई थी, इसलिए इस एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहते हैं. उत्पन्ना एकादशी से ही एकादशी के व्रत को उठाना चाहिए. यह एकादशी अत्यंत पुण्यकारी और मंगलकारी है. पद्म पुराण के अनुसार इस एकादशी का व्रत करने से सभी व्रतों का फल मिलता है. मान्यता है कि व्रत के प्रभाव से ज्ञात जन्म और पूर्व जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं. इसी के साथ भक्त मोक्ष की प्राप्ति करते हुए अंत में विष्णु के परम धाम बैकुंठ लोक पहुंच जाता है.
उत्पन्ना एकादशी कब है?
हिन्दू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की एकाशी को उत्पन्ना एकादशी कहते हैं. देवउठनी एकादशी के बाद उत्पन्ना एकादशी ही आती है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह एकादशी हर साल नवंबर या दिसंबर के महीने में आती है. इस बार यह एकादशी 11 दिसंबर को है.
उत्पन्ना एकादशी की तिथि और शुभ मुहूर्त
उत्पन्ना एकादशी की तिथि: 11 दिसंबर 2020
एकादशी तिथि प्रारंभ: 10 दिसंबर 2020 को दोपहर 12 बजकर 51 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त: 11 दिसंबर 2020 को सुबह 10 बजकर 4 मिनट तक
पारण का समय: 12 दिसंबर 2020 को सुबह 7 बजकर 5 मिनट से सुबह 9 बजकर 9 मिनट तक
उत्पन्ना एकादशी की पूजा विधि
- अगर आप एकादशी का व्रत कर रहे हैं तो दशमी से ही व्रत के नियमों का पालन करें.
- दशमी के दिन रात के समय भोजन न करें और अच्छी तरह दांत साफ करें.
- एकादशी के दिन सुबह-सवेरे उठकर व्रत का संकल्प लें.
- अब स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
- अब एक लोटे में पानी लेकर उसमें गंगाजल की कुछ बूंदें मिलाएं और उसे अपने ऊपर छिड़कें.
- इसके बाद घर के मंदिर में आसन ग्रहण कर हाथ जोड़ें भगवान विष्णु को प्रणाम करें.
- अब एक चौकी पर भगवान का आसन लगाएं और उस पर गेहूं की ढेरी रखें.
- एक कलश में जल भरकर उसे गेहूं की ढेरी के ऊपर रखें.
- कलश पर पान के पत्ते लगाकर नारियल रखें.
- अब श्रीहरि विष्णु की मूर्ति या फोटो में गंगाजल छिड़कें.
- अब उन्हें वस्त्र अर्पित कर तिलक व अक्षत लगाएं.
- अब श्री हरि विष्णु को फूलों की माला पहनाएं.
- फिर उन्हें फूल, ऋतु फल और तुलसी दल अर्पित करें.
- अब धूप-दीप से विष्णु जी की आरती उतारें.
- दिन भर उपवास रखें.
- शाम के समय विधि-विधान से आरती उतारें और व्रत कथा पढ़ें या सुनें.
- अब विष्णु जी को भोग लगाएं और परिवार के सभी सदस्यों में प्रसाद वितरित करें.
- संध्या काल में दीपदान करें.
- रात्रि में फलाहार ग्रहण करें. रात्रि जागरण कर भगवद् भजन गाएं.
- अगले दिन यानी कि द्वादश को किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं और यथाशक्ति दान देकर प्रणाम करें व विदा करें.
- स्थापित किए गए कलश के जल को अपने घर में छिड़क दें. बचे हुए जल को किसी पौधे या तुलसी में चढ़ा दें.
- इसके बाद आप भोजन ग्रहण कर स्वयं भी व्रत का पारण करें.
उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार सतयुग में मुर नाम का दैत्य उत्पन्न हुआ. वह बड़ा बलवान और भयानक था. उस प्रचंड दैत्य ने इंद्र, आदित्य, वसु, वायु, अग्नि आदि सभी देवताओं को पराजित करके भगा दिया. तब इंद्र सहित सभी देवताओं ने भयभीत होकर भगवान शिव से सारा वृत्तांत कहा और बोले- "हे कैलाशपति! मुर दैत्य से भयभीत होकर सब देवता मृत्यु लोक में फिर रहे हैं." तब भगवान शिव ने कहा- "हे देवताओं! तीनों लोकों के स्वामी, भक्तों के दु:खों का नाश करने वाले भगवान विष्णु की शरण में जाओ. वे ही तुम्हारे दु:खों को दूर कर सकते हैं."
शिवजी के ऐसे वचन सुनकर सभी देवता क्षीरसागर में पहुंचे. वहां भगवान को शयन करते देख हाथ जोड़कर उनकी स्तुति करने लगे कि "हे देवताओं द्वारा स्तुति करने योग्य प्रभु! आपको बारम्बार नमस्कार है, देवताओं की रक्षा करने वाले मधुसूदन! आपको नमस्कार है। आप हमारी रक्षा करें। दैत्यों से भयभीत होकर हम सब आपकी शरण में आए हैं. आप इस संसार के कर्ता, माता-पिता, उत्पत्ति और पालनकर्ता और संहार करने वाले हैं. सबको शांति प्रदान करने वाले हैं. आकाश और पाताल भी आप ही हैं. सबके पितामह ब्रह्मा, सूर्य, चंद्र, अग्नि, सामग्री, होम, आहुति, मंत्र, तंत्र, जप, यजमान, यज्ञ, कर्म, कर्ता, भोक्ता भी आप ही हैं. आप सर्वव्यापक हैं. आपके सिवा तीनों लोकों में चर तथा अचर कुछ भी नहीं है. हे भगवन्! दैत्यों ने हमको जीतकर स्वर्ग से भ्रष्ट कर दिया है और हम सब देवता इधर-उधर भागे-भागे फिर रहे हैं, आप उन दैत्यों से हम सबकी रक्षा करें."
इंद्र के ऐसे वचन सुनकर भगवान विष्णु कहने लगे कि "हे इंद्र! ऐसा मायावी दैत्य कौन है जिसने सब देवताओं को जीत लिया है, उसका नाम क्या है, उसमें कितना बल है और किसके आश्रय में है तथा उसका स्थान कहां है? यह सब मुझसे कहो."
भगवान के ऐसे वचन सुनकर इंद्र बोले- "भगवन! प्राचीन समय में एक नाड़ीजंघ नामक राक्षस थ उसके महापराक्रमी और लोकविख्यात मुर नाम का एक पुत्र हुआ. उसकी चंद्रावती नाम की नगरी है. उसी ने सब देवताओं को स्वर्ग से निकालकर वहां अपना अधिकार जमा लिया है. उसने इंद्र, अग्नि, वरुण, यम, वायु, ईश, चंद्रमा, नैऋत आदि सबके स्थान पर अधिकार कर लिया है. सूर्य बनकर स्वयं ही प्रकाश करता है. स्वयं ही मेघ बन बैठा है और सबसे अजेय है. हे असुर निकंदन! उस दुष्ट को मारकर देवताओं को अजेय बनाइए."
यह वचन सुनकर भगवान ने कहा- "हे देवताओं, मैं शीघ्र ही उसका संहार करुंगा. तुम चंद्रावती नगरी जाओ." इस प्रकार कहकर भगवान सहित सभी देवताओं ने चंद्रावती नगरी की ओर प्रस्थान किया. उस समय दैत्य मुर सेना सहित युद्ध भूमि में गरज रहा था. उसकी भयानक गर्जना सुनकर सभी देवता भय के मारे चारों दिशाओं में भागने लगे. जब स्वयं भगवान रणभूमि में आए तो दैत्य उन पर भी अस्त्र, शस्त्र, आयुध लेकर दौड़े.
भगवान ने उन्हें सर्प के समान अपने बाणों से बींध डाला. बहुत-से दैत्य मारे गए. केवल मुर बचा रहा. वह अविचल भाव से भगवान के साथ युद्ध करता रहा. भगवान जो-जो भी तीक्ष्ण बाण चलाते वह उसके लिए पुष्प सिद्ध होता. उसका शरीर छिन्न-भिन्न हो गया किंतु वह लगातार युद्ध करता रहा. दोनों के बीच मल्लयुद्ध भी हुआ.
10 हजार वर्ष तक उनका युद्ध चलता रहा किंतु मुर नहीं हारा. थककर भगवान बद्रिकाश्रम चले गए. वहां हेमवती नामक सुंदर गुफा थी, उसमें विश्राम करने के लिए भगवान उसके अंदर प्रवेश कर गए. यह गुफा 12 योजन लंबी थी और उसका एक ही द्वार था. विष्णु भगवान वहां योगनिद्रा की गोद में सो गए.
मुर भी पीछे-पीछे आ गया और भगवान को सोया देखकर मारने को उद्यत हुआ तभी भगवान के शरीर से उज्ज्वल, कांतिमय रूप वाली देवी प्रकट हुई. देवी ने राक्षस मुर को ललकारा, युद्ध किया और उसे तत्काल मौत के घाट उतार दिया.
श्री हरि जब योगनिद्रा की गोद से उठे, तो सब बातों को जानकर उस देवी से कहा कि आपका जन्म एकादशी के दिन हुआ है, अत: आप उत्पन्ना एकादशी के नाम से पूजित होंगी. आपके भक्त वही होंगे, जो मेरे भक्त हैं.
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