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Vaikunth Chaturdashi 2020: जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और महत्‍व

Babita Pant

नई द‍िल्‍ली 27 Nov, 2020 03:47 pm

Vaikunth Chaturdashi 2020: हिन्‍दू धर्म में बैकुंठ चतुर्दशी (Vaikunth Chaturdashi) का विशेष महत्‍व है. इस दिन देवादि देव महादेव और सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्‍णु दोनों की पूजा एक साथ की जाती है. वाराणसी के मंदिरों में बैकुंठ चतुर्दशी के दिन विशेष रूप से पूजा-अर्चना की जाती है. इसके अलावा ऋषिकेश, गया, उज्‍जैन और महाराष्‍ट्र के विभिन्‍न मंदिरों में भी इस चतुर्दशी को धूमधाम से मनाया जाता है. शिव भक्‍त और विष्‍णु भक्‍त इस दिन व्रत रखते हैं.

शिव पुराण के अनुसार कार्तिक चतुर्दशी (Kartik Chaturdashi) के दिन ही श्री हरि विष्‍णु ने वाराणसी जाकर भगवान शिव शंकर की पूजा की थी. कहते हैं कि भगवान विष्‍णु ने प्रतिज्ञा ली थी कि वे एक हजार कमल फूलों से शिव जी की पूजा करेंगे. महादेव को कमल दल अर्पित करते वक्‍त विष्‍णु जी ने देखा कि एक हजारवां कमल वहां पर नहीं है. ऐसे में अपनी पूजा को पूरा करने के लिए विष्‍णु जी ने अपने कमल रूपी नयनों में से एक नयन यानी कि आंख निकालकर भोले नाथ को अर्पित कर दी. विष्‍णु जी के भक्ति भाव से महादेव इतने प्रसन्न हुए कि उन्‍होंने न सिर्फ विष्‍णु जी की आंख पुन: ठीक कर दी बल्‍कि उन्‍हें उपहार स्‍वरूप सुदर्शन चक्र भी प्रदान किया. ये सुदर्शन चक्र भगवान विष्‍णु के सबसे शक्तिशाली और पवित्र हथियारों में से एक है.

बैकुंठ चतुर्दशी कब मनाई जाती है?
हिन्‍दू पंचाग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्‍ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को बैकुंठ चतुर्दशी मनाई जाती है. देवउठनी एकादशी के तीन दिन बाद मनाई जाने वाली यह चतुर्दशी हर साल नवंबर के महीने में आती है. इस बार बैकुंठ चतुर्दशी 28 नवंबर को है.

बैकुंठ चतुर्दशी की तिथि और शुभ मुहूर्त
बैकुंठ चतुर्दशी की तिथि:
28 नवंबर 2020
चतुर्दशी तिथि प्रारंभ: 28 नवंबर 2020 को सुबह 10 बजकर 21 मिनट से
चतुर्दशी तिथि समाप्‍त: 29 नवंबर 2020 को रात 12 बजकर 47 मिनट तक
निशीथ काल: रात 11 बजकर 42 मिनट से सुबह 12 बजकर 37 तक

बैकुंठ चतुर्दशी का महत्‍व
शिव भक्‍तों और विष्‍णु भक्‍तों के लिए बैकुंठ चतुर्दशी का विशेष महत्‍व है. साल का यह वह दिन है जब हरि (विष्‍णु) हर (महादेव) से मिलते हैं. इस दिन भक्‍त अपने आराध्‍य महादेव और श्री हरि विष्‍णु की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं. हिन्‍दू पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार जो भक्‍त इस दिन अपने पूरे परिवार के साथ भगवान विष्‍णु को 1 हजार कमल के फूल अर्पित करता है उन्‍हें श्री विष्‍णु के परम धाम बैकुंठ की प्राप्‍ति होती है. इस दिन श्राद्ध और तर्पण करना भी परम मंगलकारी और पुण्‍यकारी माना गया है. महाभारत काल में भी भगवान श्रीकृष्ण ने युद्ध में मारे गए योद्धाओं का श्राद्ध बैकुंठ चतुर्दशी के दिन ही कराया था. 

बैकुंठ चतुर्दशी के दिन पूजा विधान
बैकुंठ चतुर्दशी के दिन महादेव और भगवान विष्‍णु दोनों की पूजा का विधान है. कुछ लोग इस दिन दोनों भगवानों की पूजा एक साथ करते हैं, जबकि कुछ भक्‍त इस दिन अलग-अलग समय पर अपने आराध्‍यों को पूजते हैं. विष्‍णु भक्‍त निशीथ काल यानी कि आधी रात को विष्‍णु सहस्‍त्रनाम का पाठ करते हुए (भगवान विष्‍णु के एक हजार नाम) विष्‍णु जी की पूजा करते हैं और उन्‍हें कमल दल अर्पित करते हैं. वहीं शिव भक्‍त अरुणोदय यानी कि अल सुबह शिवार्चन करते हैं.

कार्तिक चतुर्दशी के दिन शिव भक्‍त वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर सुबह-सुबह स्‍नान करते हैं, जिसे मणिकर्णिका स्‍नान कहा जाता है. इस स्‍नान का बड़ा महात्‍म्‍य है. यही नहीं बैकुंठ चतुर्दशी साल का इकलौता ऐसा दिन है जब भगवान शिव की नगरी काशी यानी कि वाराणसी के काशी विश्‍वनाथ मंदिर के गर्भ गृह में भगवान विष्‍णु की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. मान्‍यता है कि इस दिन काशी विश्‍वनाथ मंदिर बैकुंठ धाम के समान ही पवित्र बन जाता है. मंदिर में दोनों भगवानों की पूजा इस तरह की जाती है मानों दोनों एक-दूसरे को पूज रहे हों. इस दौरान भगवान विष्‍णु जहां भोलेनाथ को तुलसी दल अर्पित करते हैं, वहीं शिव जी उन्‍हें बेल पत्र देते हैं. 

बैकुंठ चतुर्दशी की व्रत कथा
बैकुंठ चतुर्दशी को लेकर तीन कथाएं प्रचलित हैं. पहली कथा के अनुसार- एक बार की बात है नारद जी पृथ्वी लोक से घूम कर बैकुंठ धाम गए. भगवान विष्णु ने उन्हें आदरपूर्वक बिठाया और प्रसन्न होकर उनके आने का कारण पूछा. नारद जी कहने लगे, "हे प्रभु! आपने अपना नाम कृपानिधान रखा है. इससे आपके जो प्रिय भक्त हैं वही तर पाते हैं. जो सामान्य नर-नारी है, वह वंचित रह जाते हैं. इसलिए आप मुझे कोई ऐसा सरल मार्ग बताएं, जिससे सामान्य भक्त भी आपकी भक्ति कर मुक्ति पा सकें."

यह सुनकर विष्णु जी बोले- "हे नारद! मेरी बात सुनो, कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को जो नर-नारी व्रत का पालन करेंगे और श्रद्धा-भक्ति से मेरी पूजा-अर्चना करेंगे, उनके लिए स्वर्ग के द्वार साक्षात खुले होंगे."

इसके बाद विष्णु जी जय-विजय को बुलाते हैं और उन्हें कार्तिक चतुर्दशी को स्वर्ग के द्वार खुला रखने का आदेश देते हैं. भगवान विष्णु कहते हैं कि इस दिन जो भी भक्त मेरा थोड़ा-सा भी नाम लेकर पूजन करेगा, वह बैकुंठ धाम को प्राप्त करेगा.

बैकुंठ चतुर्दशी की दूसरी कथा के अनुसार एक बार भगवान विष्णु देवादिदेव महादेव का पूजन करने के लिए काशी आए. वहां मणिकर्णिका घाट पर स्नान करके उन्होंने 1000 स्वर्ण कमल पुष्पों से भगवान विश्वनाथ के पूजन का संकल्प किया. अभिषेक के बाद जब वे पूजन करने लगे तो शिवजी ने उनकी भक्ति की परीक्षा के उद्देश्य से एक कमल पुष्प कम कर दिया. भगवान श्रीहरि को पूजन की पूर्ति के लिए 1000 कमल पुष्प चढ़ाने थे. एक पुष्प की कमी देखकर उन्होंने सोचा मेरी आंखें भी तो कमल के ही समान हैं. मुझे 'कमल नयन' और 'पुंडरीकाक्ष' कहा जाता है. यह विचार कर भगवान विष्णु अपनी कमल समान आंख चढ़ाने को प्रस्तुत हुए.

विष्णु जी की इस अगाध भक्ति से प्रसन्न होकर देवादिदेव महादेव प्रकट होकर बोले- "हे विष्णु! तुम्हारे समान संसार में दूसरा कोई मेरा भक्त नहीं है. आज की यह कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी अब 'बैकुंठ चतुर्दशी' कहलाएगी और इस दिन व्रतपूर्वक जो पहले आपका पूजन करेगा, उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी."

भगवान शिव ने इसी बैकुंठ चतुर्दशी को करोड़ों सूर्यों की कांति के समान वाला सुदर्शन चक्र, विष्णु जी को प्रदान किया. शिवजी तथा विष्णुजी कहते हैं कि इस दिन स्वर्ग के द्वार खुले रहेंगें. मृत्यु लोक में रहने वाला कोई भी व्यक्ति इस व्रत को करता है, वह अपना स्थान बैकुंठ धाम में सुनिश्चित करेगा.

बैकुंठ चतुर्दशी की तीसरी कथा के अनुसार धनेश्वर नामक एक ब्राह्मण था जो बहुत बुरे काम करता था, उसके ऊपर कई पाप थे. एक दिन वो गोदावरी नदी में स्नान के लिए गया, उस दिन बैकुंठ चतुर्दशी थी. कई भक्तजन उस दिन पूजा-अर्चना कर गोदावरी घाट पर आए थे, उस भीड़ में धनेश्वर भी उन सभी के साथ था.

इस प्रकार उन श्रद्धालुओं के स्पर्श के कारण धनेश्वर को भी पुण्य मिला. जब उसकी मृत्यु हो गई तब उसे यमराज लेकर गए और नरक में भेज दिया.

तब भगवान विष्णु ने कहा यह बहुत पापी हैं पर इसने बैकुंठ चतुर्दशी के दिन गोदावरी स्नान किया और श्रद्धालुओं के पुण्य के कारण इसके सभी पाप नष्ट हो गए इसलिए इसे बैकुंठ धाम मिलेगा. अत: धनेश्वर को बैकुंठ धाम की प्राप्ति हुई.

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