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MSP लागू करने में मोदी सरकार को क्या परेशानी है? 

Tejashwi Yadav

पटना 05 Dec, 2020 10:51 am

विगत 6 वर्षों से केंद्र की NDA सरकार और 15 वर्षों से बिहार की एनडीए सरकार लगातार किसान विरोधी फैसले ले रही है. अब ये किसानों से बात करने का नाटक कर रहे है लेकिन क़ानून बनाते समय इन्होंने किसानों, उनके संगठनों और राज्य सरकारों से राय-मशवरा किये बिना ही संसद में एकतरफ़ा 3 कृषि विधेयकों को पास करा लिया. 

तेल, रेल, जहाज, बंदरगाह, हवाई अड्डे, बीएसएनएल, एलआईसी बेचने के बाद भाजपा सरकार अब किसानों की ज़मीन भी पूंजीपतियों के हाथों बेचने पर तुली है. मोदी सरकार कृषि क्षेत्र का भी निजीकरण करने को आतुर है.

अगर नए कृषि विधेयक इतने ही अच्छे और किसानों के पक्ष में है तो सरकार MSP यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य को अनिवार्य रूप से लागू क्यों नहीं करती? अनिवार्य रूप से MSP लागू करने में मोदी सरकार को क्या परेशानी है? 

सरकार के इस फैसले से मंडी व्यवस्था ही खत्म हो जायेगी. इससे किसानों को नुकसान होगा और कॉरपोरेट को फायदा होगा. इस विधेयक में वन नेशन, वन मार्केट की बात कही जा रही है लेकिन वन MSP की बात क्यों नहीं की जा रही? सरकार इसके जरिये कृषि उपज विपणन समितियों (APMC) के एकाधिकार को खत्म करना चाहती है. अगर इसे खत्म किया जाता है तो व्यापारियों की मनमानी बढ़ेगी, किसानों को उपज की सही कीमत नहीं मिलेगी.

सबसे बड़ा खतरा यह है कि इस बिल के पास हो जाने के बाद सरकार के हाथ में खाद्यान्न नियंत्रण नहीं रहेगा और मुनाफे के लिये जमाखोरी को बढ़ावा मिलेगा.

ये विधेयक एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) प्रणाली द्वारा किसानों को प्रदान किए गए सुरक्षा कवच को कमजोर कर देगा और बड़ी कंपनियों द्वारा किसानों के शोषण की स्थिति को जन्म देगा.

भाजपा कहती थी कि फसल की कुल लागत का 50% जोड़कर MSP किसानों को दिया जाएगा और कहाँ इतनी चालाकी से अब MSP ही खत्म किया जा रहा है!

यह क़ानून कहता है कि बड़े कारोबारी सीधे किसानों से उपज खरीद कर सकेंगे, लेकिन ये यह नहीं बताता कि जिन किसानों के पास मोल-भाव करने की क्षमता नहीं है, वे इसका लाभ कैसे उठाऐंगे?

सरकार एक राष्ट्र, एक मार्केट बनाने की बात कर रही है, लेकिन उसे ये नहीं पता कि जो किसान अपने जिले में अपनी फसल नहीं बेच पाता है, वह राज्य या दूसरे जिले में कैसे बेच पायेगा. क्या किसानों के पास इतने साधन हैं और दूर मंडियों में ले जाने में खर्च भी तो आयेगा.

बिहार में APMC प्रणाली 2006 में समाप्त कर दी गई थी जिसके फलस्वरुप बिहार के किसान समय के साथ गरीब होते चले गए क्योंकि उन्हे MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) का लाभ मिलना भी बंद हो गया और पलायन करने वालों की संख्या बढती चली गई. इस वर्ष नीतीश सरकार के कुल गेहूँ खरीद के लक्ष्य का 1% (.71) से भी कम MSP के मूल्य पर खरीद हुई. बताइए, इससे किसान को कैसे फ़ायदा हुआ? बिहार सरकार बतायें MSP पर धान की कितनी ख़रीद हुई? 

14 साल से यही पालिसी बिहार में लागू है और आप देख लीजिए आज क्या हालात है प्रदेश में क्योंकि प्रदेश में MSP ही नहीं है. आज बिहार प्रदेश का किसान मक्कई का MSP 1850 ₹ क्विंटल होने के बावजूद उसे बिचौलियों को 900-1100₹ क्विंटल में बेचता है. यही स्थिति धान की है. इससे किसान को ही नुक़सान है. इससे किसान को ही विशुद्ध नुक़सान है.

केंद्र ने अब दाल, आलू, प्याज, अनाज और खाद्य तेल आदि को आवश्यक वस्तु नियम से बाहर कर इसकी स्टॉक सीमा समाप्त कर दी है अब कोई कितना भी अपने हिसाब से भंडारण कर सकता है और इस वजह से बाज़ार में माँग और पूर्ति कॉरपोरेट जगत अपने हिसाब से बनाकर फायदा उठाएगा. 

इस अध्यादेश की धारा 4 में कहा गया है कि किसान को पैसा तीन कार्य दिवस में दिया जाएगा. किसान का पैसा फंसने पर उसे दूसरे मंडल या प्रांत में बार-बार चक्कर काटने होंगे. न तो किसान के पास लड़ने की ताकत है और न ही वह ऑनलाइन अपना सौदा कर सकता है. यही कारण है किसान इसके विरोध में है.

अब पशुधन और बाज़ार समितियांं किसी इलाक़े तक सीमित नहीं रहेंगी. अगर किसान अपना उत्पाद मंडी में बेचने जाएगा, तो दूसरी जगहों से भी लोग आकर उस मंडी में अपना माल डाल देंगे और किसान को उनकी निर्धारित रक़म नहीं मिल पाएगी और छोटे किसानों को सबसे ज्यादा मार पड़ेगी.

विवाद सुलझाने के लिए 30 दिन के अंदर समझौता मंडल में जाना होगा. वहां न सुलझा तो धारा 13 के अनुसार एसडीएम के यहां मुकदमा करना होगा. एसडीएम के आदेश की अपील जिला अधिकारी के यहां होगी और जीतने पर किसानें को भुगतान करने का आदेश दिया जाएगा. देश के 85 फीसदी किसान के पास दो-तीन एकड़ जोत है. विवाद होने पर उनकी पूरी पूंजी वकील करने और ऑफिसों के चक्कर काटने में ही खर्च हो जाएगी.

हमारे देश में 85% लघु किसान हैं, बिहार में तो छोटी और मझली जोत के किसान और भी अधिक है. किसानों के पास लंबे समय तक भंडारण की व्यवस्था नहीं होती है यानी यह अध्यादेश बड़ी कम्पनियों द्वारा कृषि उत्पादों की कालाबाज़ारी के लिए लाया गया है. कम्पनियां और सुपर मार्केट अपने बड़े-बड़े गोदामों में कृषि उत्पादों का भंडारण करेंगे और बाद में ऊंचे दामों पर ग्राहकों को बेचेंगे. किसान संगठनों का कहना कि इस बदलाव से कालाबाजारी घटेगी नहीं बल्की बढ़ेगी. जमाखोरी बढ़ेगी.

जो कंपनी या व्यक्ति ठेके पर कृषि उत्पाद लेगा, उसे प्राकृतिक आपदा या कृषि में हुआ नुक़सान से कोई लेना देना नहीं होगा. इसका ख़मियाज़ा सिर्फ़ किसान को उठाना पड़ेगा.
इस तानाशाह सरकार को किसान की कोई फ़िक्र नहीं है, किसान लगातार प्रदर्शन कर रहे लेकिन सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही.

हमारी पार्टी सभी किसान संगठनों की मांगों के समर्थन में है. मैं सरकार से मांग करता हूं कि इस किसान विरोधी क़ानून को वापस ले. हमारी पार्टी किसान मजदूर भाइयों के साथ हर कदम साथ खड़ी है.

(तेजस्‍वी यादव राष्‍ट्रीय जनता दल के नेता हैं. राष्‍ट्रीय जनता दल बिहार की सबसे बड़ी पार्टी.)

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