चूंकि मैं स्वयं अर्थशास्त्र का छात्र नहीं रहा हूं और रूचि के कारण इस विषय को जिंदगी में बहुत देर में पढ़ना शुरू किया. अतः इसे सरल शब्दों में समझाने का प्रयास करूंगा.
कर नीति - किसी भी तरह से आप देख ले - एक त्रुटिपूर्ण कार्रवाई है. कोई भी नागरिक स्वैच्छा से टैक्स नहीं देना चाहता. इस स्थिति में कोई भी सरकार कैसे एक ऐसी कर नीति बनाएं जिससे नागरिकों से टैक्स ले सकें, सरकार का काम चला सके, अपने कर्तव्यों का वहन कर सके, आर्थिक प्रगति को बढ़ा सकें, साथ ही असमानता को घटा सकें.
सरकार दो तरीके से कर जुटाती है-
प्रत्यक्ष यानी कि इनकम टैक्स और अप्रत्यक्ष जैसे एक्साइज, जीएसटी इत्यादि.
अगर आय पर कर लगता है तो केवल वही व्यक्ति कर देंगे जिनकी इनकम एक स्तर से ऊपर हो रही हो. अतः गरीब मजदूर, मोची, धोबी, रिक्शेवाले, ठेलेवाले इत्यादि को आयकर नहीं देना पड़ता.
लेकिन जब आप पैक्ड सरसों का तेल, साबुन, चाय की पत्ती, चीनी, पेट्रोल इत्यादि खरीदते हैं तो उस पर GST या अन्य कर लगता है जो अप्रत्यक्ष है. करोड़पति भी उतना ही अप्रत्यक्ष कर देगा जो एक रिक्शा चलाने वाला है या एक मजदूर जो आपके घर के बाहर बैठकर पत्थर तोड़ रही हो, या फिर मुसहर समाज के लोग, जो गरीबी रेखा के नीचे अभिशप्त जीवन व्यतीत कर रहे है.
यह एक कठिन प्रश्न है कि कौन सा टैक्स और टैक्स की दर करदाता को स्वीकार होगी? कैसे उस टैक्स की दर से सरकार अपने राजस्व की आवश्यकता तथा आर्थिक उन्नति के लक्ष्य को पूरा करेगी? कैसे और कौन से ऐसे टैक्स और टैक्स के स्तर हैं जो विकास को प्रभावित कर सकते हैं? क्या कोई ऐसी सही टैक्स पॉलिसी है जो विकास की समस्या को सुलझा सके, निकट भविष्य की परिस्थितियों को सुलझाए, साथ ही दीर्घकालिक समय पर भी कारगर साबित हो?
क्या सर पे ईटा उठा के हमारा घर, मेट्रो, सड़क बनाने वाली महिला को चीनी खरीदते समय वही GST देना चाहिए जो एक छोटा दुकानदार, बढ़ई, फैक्ट्री में कपड़ा सिलने वाली महिला, किसी कॉल सेंटर में 8 से 10 हजार कमाने वाली छात्रा को देना चाहिए? या फिर हमारे सांसद, विधायक, करोड़पति, मॉल में बैठे दुकानदार, मारुती की सबसे छोटी या सबसे बड़ी कार में चलने वाला व्यक्ति या उससे जीवपनयापन करने वाला ड्राइवर, या स्कूटर, मोटरसाइकिल चलाने वाले नवयुवक और नवयुवतियां - क्या उन्हें भी वही टैक्स देना चाहिए?
क्या इसका कोई आसान उपाय है?
वर्ष 2017 के आर्थिक सर्वेक्षण में बतलाया गया कि है कि सातवें पे कमीशन और वन रैंक वन पेंशन की योजना लागू करने के बाद भी सरकार ने अपनी वित्तीय व्यवस्था को मजबूत किया है. सर्वेक्षण के अनुसार इस मजबूती के पीछे पेट्रोलियम उत्पादों पर एक्साइज ड्यूटी के कारण राजस्व में बढ़ोतरी है. स्वच्छ भारत सेस और कृषि कल्याण सेस ने सर्विस टैक्स कलेक्शन में एक तिहाई से अधिक वृद्धि की है. पेट्रोलियम उत्पादों के टैक्स ने कुल उत्पाद शुल्क की वृद्धि में दो-तिहाई से अधिक का योगदान दिया है.
उपग्रह से मिला डेटा इंगित करता है कि बेंगलुरु और जयपुर संभावित संपत्ति करों का केवल 5% से 20% के बीच जमा करते हैं. जिनके पास संपत्ति है, क्या उनसे संपत्ति कर नहीं वसूलना चाहिए? क्या फुटपाथ और निर्माण स्थल पे सोने वाले बिना छत वाली महिलाओं, पुरुषों और किशोरों का ही दायित्व है जब भी वे तेल, चीनी, नमक, चाय की पत्ती, दवा खरीदे तो टैक्स दे, जबकि आप - चाहे आपका पक्का घर 500 फुट का हो या 5000 गज का, बिना संपत्ति कर दिए बच जाए?
पेट्रोलियम उत्पादों पर ही इतना टैक्स क्यों? क्योंकि लगभग 90% पेट्रोलियम उत्पाद भारत विदेशों से आयात करता है. क्या हमें इस आयात पर कंट्रोल नहीं रखना चाहिए? क्या आपने कभी सोचा है कि किन देशों से तेल आयात होता है? क्या रही है उन देशो की नीतियां हमारे देश की शांति और सुरक्षा की तरफ? क्या आप चाहेंगे कि आपका अधिक से अधिक पैसा उन देशों की तरफ जाएं? क्या सरकार को पेट्रोलियम उत्पादों का प्रयोग कम करने की दिशा में प्रयास नहीं करना चाहिए? क्लाइमेट चेंज एग्रीमेंट के द्वारा क्या सरकार ग्रीन हाउस गैस को कम करने के लिए प्रतिबद्ध नहीं है? कैसे ग्रीन हाउस गैस का उत्पाद कम होगा जब हम जमीन के नीचे मिलने वाले ईंधन का इस्तेमाल करेंगे?
क्या यह लक्ष्य सरकार की नीतियों का हिस्सा नहीं होना चाहिए और अगर हो तो कैसे उन लक्ष्यों को पूरा किया जाए?
चलिए आपका तर्क माना कि पेट्रोलियम उत्पादों पर केंद्र एवं राज्य सरकारों को टैक्स कम कर के सस्ता बेचना चाहिए. फिर आप ही बतलाइए अपने राजस्व को मेंटेन करने के लिए सरकार किन और उत्पादों पर टैक्स लगाएं और बढ़ाएं? सरकार को तब तक अप्रत्यक्ष करों का सहारा लेना पड़ेगा, जब तक देश की जनता आय कर को ईमानदारी से भरना ना शुरू कर दे.
प्रत्यक्ष करों के द्वारा ही सरकार यह सुनिश्चित कर सकती है कि धन का ट्रांसफर अमीर लोगों से गरीब लोगों की तरफ किया जा सके और समाज में असमानता कम की जा सके.
अंत में, भारत में हर 100 मतदाताओं में से केवल 7 प्रत्यक्ष करदाता हैं, जबकि नॉर्वे में 100 मतदाताओं में से 100 के 100 करदाता हैं. भारत में कुल राष्ट्रीय आय का केवल 15.5 फीसदी आय ही टैक्स अधिकारियों को रिपोर्ट होती है.
हमारे देश में राजनीतिक लोकतंत्र तो है, लेकिन वित्तीय लोकतंत्र किस मुकाम पे है?
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