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आखिर क्‍यों भगवान शिव को लेना पड़ा था अर्धनारीश्वर का रूप?

PujaPandit Desk

नई द‍िल्‍ली 07 Oct, 2020 03:53 pm

हिन्‍दू धर्म में भगवान शिव को अलग-अलग नामों से जाना जाता है. महादवे के कई रूप हैं, लेकिन शिव के एक रूप के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं. इस रूप का नाम है अर्धनारीश्वर (Ardhanarishvara or Ardhnarishwar). भगवान शंकर के अर्धनारीश्वर अवतार में उनका आधा शरीर स्त्री का और आधा शरीर पुरुष का है. कहा जाता है कि शिव ने यह रूप अपनी इच्‍छा से धारण किया था. इस रूप के जरिए उन्होंने स्त्री और पुरुष के एक समान होने का संदेश दिया. मान्यता है कि शिव के इस रूप का चित्र घर में लगाने से सारे अमंगल दूर हो जाते हैं. आइए जानते हैं कि आखिर शिव को किस वजह से अर्धनारीश्वर का रूप लेना पड़ा.

शिव के अर्धनारीश्वर रूप की पौराणिक कथा
शिवपुराण के अनुसार सृष्टि में प्रजा का विस्तार न होने पर ब्रह्माजी ने मैथुनी सृष्टि उत्पन्न करने का निश्चय किया, लेकिन सृष्टि में तब तक नारियां अस्तित्व में नहीं आई थीं. तब ब्रह्माजी ने शक्ति के साथ शिव को संतुष्ट करने के लिए तपस्या की. ब्रह्माजी की तपस्या से प्रसन्न शिव भगवान अर्धनारीश्वर का रूप धारण कर प्रकट हुए. शिव ने शरीर में स्थित उमा देवी के अंश को खुद से अलग कर दिया और अपनी भृकुटि के मध्य से अपने ही समान कांति वाली एक अन्य शक्ति की सृष्टि की. सृष्टि निर्माण के लिए शिव की इस शक्ति ने दक्ष के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया. 

शंकर के अर्धनारीश्वर रूप में दाईं तरफ शिव और बाईं तरफ शक्ति होती हैं. शिव के बगैर शक्ति की कल्पना नहीं की जा सकती. शिव का यह रूप संदेश देता है कि महिलाओं और पुरुषों के समान ही आदर मिलना चाहिए.

अर्धनारीश्वर स्‍तोत्र
हिन्‍दू धर्म में अर्धनारीश्वर स्‍तोत्र को बेहद फलदाई माना गया है. मान्‍यता है कि इस स्‍तोत्र का पाठ करने वाला भक्‍त संपूर्ण संसार में सम्‍मान प्राप्‍त करता है, उसकी उम्र लंबी होती है. यही नहीं इस स्‍तोत्र का पाठ करने वाला महादेव का भक्‍त सौभाग्‍य के साथ समस्‍त सिद्धियों को प्राप्‍त करता है. अर्धनारीश्‍वर स्‍तोत्र इस प्रकार है:
चाम्पेयगौरार्धशरीरकायै कर्पूरगौरार्धशरीरकाय ।
धम्मिल्लकायै च जटाधराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ १ ॥

कस्तूरिकाकुंकुमचर्चितायै चितारजः पुंजविचर्चिताय ।
कृतस्मरायै विकृतस्मराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ २ ॥

चलत्क्वणत्कंकणनूपुरायै पादाब्जराजत्फणीनूपुराय ।
हेमांगदायै भुजगांगदाय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ ३ ॥

विशालनीलोत्पललोचनायै विकासिपंकेरुहलोचनाय ।
समेक्षणायै विषमेक्षणाय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ ४ ॥

मन्दारमालाकलितालकायै कपालमालांकितकन्धराय ।
दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ ५ ॥

अम्भोधरश्यामलकुन्तलायै तडित्प्रभाताम्रजटाधराय ।
निरीश्वरायै निखिलेश्वराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ ६ ॥

प्रपंचसृष्ट्युन्मुखलास्यकायै समस्तसंहारकताण्डवाय ।
जगज्जनन्यैजगदेकपित्रे नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ ७ ॥

प्रदीप्तरत्नोज्ज्वलकुण्डलायै स्फुरन्महापन्नगभूषणाय ।
शिवान्वितायै च शिवान्विताय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ ८ ॥

स्तोत्र पाठ का फल
एतत् पठेदष्टकमिष्टदं यो भक्त्या स मान्यो भुवि दीर्घजीवी ।
प्राप्नोति सौभाग्यमनन्तकालं भूयात् सदा तस्य समस्तसिद्धि: ॥ ९ ॥

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