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इस्लामिक देशों के निशाने पर क्यों है फ्रांस?

Suresh Kumar

नई दिल्‍ली 26 Oct, 2020 02:41 pm

पश्चिमी यूरोपीय देश फ्रांस इन दिनों इस्लामिक देशों के निशाने पर है. तुर्की से लेकर पाकिस्तान तक के नेता फ्रांस पर ज़ुबानी हमले कर रहे हैं. सऊदी अरब से लेकर क़तर और जॉर्डन तक फ्रांस में बने सामानों के बहिष्कार के अभियान चलाए जा रहे हैं.

आख़िर इसकी वजह क्या है?

असल में इस पूरे क़िस्से की शुरुआत पिछले शुक्रवार यानी 16 अक्टूबर को हुई थी जब फ्रांस की राजधानी पेरिस में एक स्कूल टीचर सैमुअल पैटी का सिर क़लम करके उनकी हत्या कर दी गई. पैटी की हत्या चेचेन मूल के 18 बरस के युवक अब्दुल्लाख़ एंज़ोरोव नाम के युवक ने की थी. 

सैमुअल पैटी एक मिडिल स्कूल टीचर थे. उन्होंने स्कूल में अभिव्यक्ति की आज़ादी की अपनी कक्षा में मुसलमानों के पैग़म्बर मुहम्मद का एक कार्टून दिखाया था. ये कार्टून, फ्रांस की पत्रिका शार्ली हेब्दो ने साल 2015 में छापा था. 

उस साल भी फ्रांस में शार्ली हेब्दो के कार्टून छापने के बाद, पत्रिका के दफ़्तर पर आतंकवादी हमला हुआ था. जिसमें कई लोग मारे गए थे. इस हमले के मुक़दमे पर फ़्रांस की अदालत का फ़ैसला आने वाला है. इसी दौरान सैमुअल पैटी ने अपने छात्रों को अभिव्यक्ति की आज़ादी का मतलब समझाने के लिए शार्ली हेब्दो पत्रिका में प्रकाशित हुए पैग़म्बर मुहम्मद के कार्टून को छात्रों को दिखाया.

सैमुअल पैटी के हत्यारे अब्दुल्ला एंज़ोरोव का मानना था कि पैटी ने पैग़म्बर मुहम्मद का कार्टून दिखाकर मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं को आहत किया है. उनके पैग़म्बर का अपमान किया है. इसीलिए उसने पैटी का सिर काट कर उन्हें मार डाला. हत्यारे एंज़ोरोव को पेरिस की पुलिस ने कुछ ही मिनटों के भीतर गोली मार दी थी. 

सैमुअल पैटी की हत्या के बाद पूरे फ्रांस में विरोध प्रदर्शन हुए थे. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैन्युअल मैक्रों ने इसे एक इस्लामिक आतंकवादी हमला बताया था. और उन्होंने कहा था कि वो किसी एक धर्म की भावनाएं आहत होने के नाम पर अभिव्यक्ति की आज़ादी को सीमित नहीं कर सकते. फ्रांस में नागरिकों के अधिकारों के लिए लड़ाई और क़ुर्बानी का लंबा इतिहास रहा है.वैसे सैमुअल पैटी की हत्या से पहले ही मैक्रों फ्रांस में बढ़ते इस्लामिक कट्टरपंथ को रोकने के लिए क़ानून बनाने की बात कर रहे थे. अब पैटी की हत्या के बाद उन्होंने इस्लामिक आतंकवाद और चरमपंथी विचारधारा के ख़िलाफ़ और सख़्त रवैया अपना लिया है.

मैक्रों के इस बयान पर सबसे पहले तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप अर्दोआन की प्रतिक्रिया आई. अर्दोआन ने कहा कि फ्रांस के राष्ट्रपति का दिमाग़ ख़राब हो गया है. उन्हें अपना इलाज कराना चाहिए.

तुर्की के राष्ट्रपति के बयान से नाराज़ होकर फ्रांस ने वहां से अपने राजदूत को वापस बुला लिया था. तुर्की के प्रेसीडेंट अर्दोआन पिछले कई वर्षों से इस्लामिक मुद्दों पर मुखर रवैया अपनाए हुए हैं. वो ख़ुद को दुनिया भर के मुसलमानों के लीडर के तौर पर स्थापित करना चाहते हैं. इसी सिलसिले में उन्होंने तुर्की में पिछली सदी में कमाल अतातुर्क पाशा के दौर में किए गए धार्मिक सुधारों को पलट दिया है. और हज़ार साल से भी ज़्यादा पुराने इस्तांबुल के हाया सोफ़िया चर्च को दोबारा मस्जिद में तब्दील कर दिया है.

ऐसे में जब फ्रांस के प्रेसीडेंट ने सैमुअल पैटी की हत्या को इस्लामिक आतंकवाद का नमूना कहा, तो अर्दोआन ने फ़ौरन इस मुद्दे को लपक लिया और मैक्रों पर इस्लाम को बदनाम करने का आरोप लगाया.

वैसे, ख़ुद को दुनिया भर के मुसलमानों का मुखिया जताने की होड़ में सिर्फ़ तुर्की के राष्ट्रपति ही नहीं हैं. 

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान भी अपने आपको सच्चा मुसलमान साबित करने के लिए दुनिया भर के मुसलमानों की आवाज़ बनने का दावा करते हैं. उन्होंने भी फ्रांस के प्रेसीडेंट मैक्रों पर आरोप लगाया कि वो इस्लाम को समझे बग़ैर उस पर तोहमतें लगा रहे हैं.

मैक्रों ने पैटी की हत्या को इस्लामिक कट्टरपंथ का नमूना ही नहीं कहा था. उन्होंने कहा था कि आतंकवाद के चलते आज इस्लाम धर्म ही ख़तरे में है. 

इसके जवाब मे इमरान ख़ान ने आरोप लगाया कि मैक्रों को इस्लाम की समझ ही नहीं है. और वो बिना सोचे समझे इस्लाम पर इल्ज़ाम लगा रहे हैं. वो आतंकवादी हमला करने वालों के बजाय पूरे धर्म को ही निशाना बना रहे हैं. इससे कट्टरपंथ और भी बढ़ेगा.

इमरान ख़ान ने फ़ेसबुक के सीईओ मार्क ज़करबर्ग को भी एक ख़त लिखा है. और इसमें उनसे मांग की है कि इस्लाम का ख़ौफ़ दिखाने वाली पोस्ट को फ़ेसबुक से हटाने की व्यवस्था करें. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री कार्यालय ने इमरान ख़ान की इस चिट्ठी को सार्वजनिक भी किया है.

इमरान ख़ान के फ्रांस के विवाद में कूदने की वजह बिल्कुल क्लियर है. घरेलू मोर्चे पर वो चौतरफ़ा घिरे हुए हैं. पाकिस्तान के 11 विपक्षी दलों ने उनके ख़िलाफ़ लोकतांत्रिक आंदोलन (Pakistan Democratic Movement) छेड़ा हुआ है. वहीं, उनके मुल्क का ख़ज़ाना ख़ाली है. देश में गेहूं की कमी के चलते आटे के दाम आसमान पर हैं. वहीं, चीनी की क़ीमतें भी आउट ऑफ़ कंट्रोल हो रही हैं. तो पाकिस्तान के अवाम के लिए अंडे अफोर्ड करना भी मुश्किल हो रहा है. अब हमेशा की तरह वो अपने सामने खड़ी चुनौतियों  से जनता का ध्यान हटाने के लिए इस्लाम का सहारा ले रहे हैं.

तुर्की और पाकिस्तान के अलावा, अरब देशों ने भी फ्रेंच प्रेसीडेंट मैक्रों के बयान पर कड़ा ऐतराज़ जताया है. सऊदी अरब, क़तर, जॉर्डन और कुवैत जैसे देशों में बड़े बड़े स्टोर्स से फ्रांस में बने प्रोडक्ट हटा लिए गए हैं. इन देशों में बायकॉट फ्रांस हैशटैग से फ्रांस के ख़िलाफ़ अभियान चलाया जा रहा है. इन देशों का भी आरोप यही है कि फ्रांस के राष्ट्रपति ने इस्लाम का अपमान किया है.

हालांकि, मुस्लिम देशों की मुख़ालफ़त के बावजूद, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैन्युअल मैक्रों ने माफ़ी मांगने या अपने क़दम पीछे खींचने से इनकार कर दिया है. मैक्रों ने कहा है कि वो किसी भी क़ीमत पर फ्रांस में कट्टरपंथ को अपनी जडें जमाने नहीं देंगे. उन्होंने इस्लामिक उग्रवाद से निपटने के लिए नया क़ानून भी जल्द से जल्द बनाने का वादा दोहराया है. मैक्रों ने एक के बाद एक कई ट्वीट करके कहा कि हम किसी के डर से पीछे नहीं हटेंगे.

मैक्रों ने फ्रेंच भाषा के साथ साथ अंग्रेज़ी और अरबी ज़बान में भी ट्वीट किए.

इसके अलावा फ्रांस की सरकार ने अरब देशों से अपील की है कि वो फ्रांस में बने प्रोडक्ट का बहिष्कार करना बंद करें.

मैक्रों के बयान के बाद उनके समर्थन में और सैमुअल पैटी की फैमिली से हमदर्दी जताते हुए पूरे फ्रांस में प्रदर्शन हुए हैं. हैशटैग #WeAreallSamuel के माध्यम से प्रदर्शनकारियों ने सैमुअल पैटी के समर्थन में आवा़ उठाई. उनकी याद में हुई एक प्रार्थना सभा में प्रेसीडेंट मैक्रों ने पूरे देश से एकजुट होने की अपील की.

सैमुअल पैटी की हत्या के बाद से ही फ्रांस के कई मुस्लिम बहुल इलाक़ों में कर्फ्यू लगा हुआ है. माना जा रहा है कि आगे चल कर फ्रांस की सरकार इस्लामिक कट्टरपंथियों के ख़िलाफ़ और कड़े क़दम उठा सकती है. पैटी की हत्या के बाद फ्रांस ने पहले ही अपने यहां की मस्जिदों और मदरसों में किसी अन्य देश के मौलवी के पढ़ाने, ख़ुत्बा देने या तक़रीर करने पर रोक लगा दी है. इसके अलावा, फ्रांस ने 231 इस्लामिक चरमपंथियों को अपने देश से निकाल बाहर किया है.

इससे पहले 2015 में शार्ली हेब्दो पत्रिका के पैग़म्बर मुहम्मद के कार्टून छापने के बाद, पेरिस में हुए आतंकवादी हमले के बाद भी फ्रांस की सरकार ने इस्लामिक कट्टरपंथियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की थी. उग्रवादी गतिविधियों के आरोप में पेरिस की तीन मस्जिदों को बंद कर दिया गया था. इसके बाद फ्रांस की सरकार ने अपने मुसलमान नागरिकों के बारे में सर्वे कराया था. जिसमें कई मस्जिदों में कट्टरपंथ को बढ़ावा देने की तक़रीरें होने की जानकारी मिली. जिसके बाद पूरे फ्रांस में 20 मस्जिदों को बंद कर दिया गया था. यही नहीं, वर्ष 2019 में फ्रांस ने राजनीतिक विचारधारा के तौर पर इस्लाम का प्रचार प्रसार करने वाले कई कैफे, स्कूलों, 15 मुहल्लों और मस्जिदों को बंद कर दिया था.

फ्रांस की मुक्त संस्कृति के इस्लाम से टकराव का इतिहास पुराना है. फ्रांस में बसे अधिकतर मुसलमान, उत्तरी और पश्चिमी अफ्रीका व मध्य पूर्व में उसके पूर्व उपनिवेशों और जैसे कि अल्जीरिया, मोरक्को, ट्यूनिशिया, सीरिया, तुर्की और अन्य इस्लामिक देशों से आए हैं.

पश्चिमी देशों में फ्रांस ऐसा देश है, जहां मुसलमानों की आबादी सबसे अधिक है. इस्लामिक आतंकवाद के चलते फ्रांस में साल 2015 से 2018 के बीच 22 आतंकवादी हमलों में ढाई सौ से अधिक लोगों की जान जा चुकी है.

2011 में फ्रांस ने सार्वजनिक स्थानों पर बुर्क़ा पहनने पर रोक लगा दी थी. तब निकोलस सारकोज़ी फ्रांस के राष्ट्रपति थे. उनके इस फ़ैसले की इस्लामिक अनुयायियों ने कड़ी आलोचना की थी. लेकिन, सारकोज़ी ने कहा था कि बुर्क़ा या नक़ाब पहनने से महिलाओं की आज़ादी बाधित होती है.

2016 में फ्रांस ने महिलाओं के फुल बॉडी स्विमसूट पहनने पर भी रोक लगा दी थी. इसे बुर्किनी कहा जाता है. और मुस्लिम महिलाएं स्विमिंग के लिए इसका इस्तेमाल करती थीं. लेकिन, उस वक़्त के फ्रांस के प्रधानमंत्री मैन्युअल वाल्स ने कहा था कि ये बुर्किनी पहनना एक तरह से इस्लाम का राजनीतिक प्रचार करने जैसा है, और फ्रांस में इसकी इजाज़त नहीं दी जा सकती. हालांकि, बाद में ये प्रतिबंध तब हटाने पड़े थे, जब फ्रांस की एक अदालत ने इस प्रतिबंध को ग़ैरक़ानूनी क़रार दिया था.

फ्रांस में मुसलमानों की आबादी क़रीब साठ लाख है. और इसमें से ज़्यादातर मुसलमान नागरिकों को फ्रांस की सभ्यता, संस्कृति और नियमों पर कोई आपत्ति नहीं है. लेकिन, हाल के वर्षों में एक तबक़े के बीच इस्लामिक कट्टरपंथ ने अपनी जड़ें जमा ली हैं. दूसरे देशों से आए इमाम और मौलवी, धार्मिक तक़रीरों से चरमपंथी सोच की जड़ें मज़बूत करने में जुटे हुए हैं.

एक सर्वे के मुताबिक़, फ्रांस में रहने वाले 40 प्रतिशत मुसलमानों ने कहा कि उनके लिए फ्रांस के गणराज्य के नियम क़ायदों से ज़्यादा इस्लामिक परंपराएं अहमियत रखती हैं. और, युवा मुसलमानों की तो 74 प्रतिशत आबादी, फ्रांस के संविधान और क़ानूनों से ज़्यादा इस्लामिक मूल्यों को अहमियत देती है. 

इसी इस्लामिक कट्टरपंथ से निपटने के लिए फ्रांस के राष्ट्रपति इमैन्युअल मैक्रों ने एक नया क़ानून बनाने का एलान किया है.

इस क़ानून के तहत विदेशों के इमामों के फ्रांस आकर नमाज़ पढ़ाने की इजाज़त नहीं होगी. घर में बच्चों को पढ़ाने की इजाज़त नहीं होगी. इसके अलावा, नए क़ानून के तहत इस्लामिक कट्टरपंथ से निपटने के लिए इंस्टीट्यूट ऑफ़ इस्लामोलॉजी की स्थापना का भी प्रस्ताव है. इस नए क़ानून को अगले साल की शुरुआत में फ्रांस की संसद में पेश किए जाने की संभावना है.

इससे पहले, मैक्रों की सरकार ने एक और क़ानून भी संसद में पेश किया है. जिसमें उन डॉक्टरों को जेल की सज़ा और जुर्माना देने का प्रावधान है, जो मुस्लिम लड़कियों के कुआंरी या वर्जिन होने का सर्टिफिकेट देते हैं. मुसलमानों के एक तबक़े में ऐसे पारंपरिक, धार्मिक निकाहों का प्रावधान है.

सैमुअल पैटी की हत्या ने फ्रांस के सामने इस्लामिक चरमपंथ की एक बड़ी चुनौती पेश की है. अब फ्रांस इससे कैसे निपटता है, ये बात यूरोपीय देशों और अमेरिका के लिए एक नज़ीर बन सकती है.

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