हिन्दू धर्म में पूजा-पाठ तिलक के बिना अधूरी समझी जाती है. घर में कोई त्यौहार, शादी या पूजा हो तो इसकी शुरुआत तिलक लगा कर ही की जाती है. तिलक लगाना शास्त्रों में शुभ माना गया है. तिलक लगाने के साथ-साथ माथे पर चावल भी लगाए जाते हैं. बहुत कम लोग इस बारे में जानते होंगे कि कुमकुम के साथ चावल लगाने का भी एक विशेष महत्व होता है.
यहां हम आपको इसके महत्व के बारे में बता रहे हैं जिसे जानने के बाद आप चावल यानी अक्षत के बिना माथे पर तिलक कभी नहीं लगाएंगे. वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो माथे पर तिलक लगाने से दिमाग में शांति और शीतलता बनी रहती है. इसके इलावा चावल को शुद्धता का प्रतीक माना जाता है. वही अगर शास्त्रों की बात करें तो चावल को हवन में देवी देवताओं को चढ़ाने वाला शुद्ध अन्न माना जाता है.
एक मान्यता के अनुसार चावल का एक अन्य नाम अक्षत भी है. अक्षत का अर्थ होता है कभी क्षय ना होने वाला या जिसका कभी नाश नहीं होता है. तभी तो हम हर खास मौके पर चावल जरूर बनाते है. जिस चावल का इस्तेमाल पूजा-पाठ में किया जाता है उसे अक्षत कहते हैं.
नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में बदलता है चावल
ऐसा माना जाता है कि कच्चा चावल व्यक्ति को सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है. यही वजह है कि पूजा के दौरान ना केवल माथे पर तिलक लगाते समय इसका इस्तेमाल होता है, बल्कि पूजा की विधि संपन्न करने के लिए भी चावलों का इस्तेमाल किया जाता है. आपने अक्सर देखा होगा कि पूजा में तिलक और पुष्प के साथ कुछ मीठा और चावल जरूर होते हैं. वो इसलिए क्यूंकि पूजा की विधि बिना चावलों के पूरी नहीं हो सकती.
चावलों को शुद्धता का प्रतीक माना जाता है और इसे माथे पर तिलक के साथ लगाया जाता है. इसके इलावा पूजा में भी कुमकुम के तिलक के ऊपर चावल के दाने इसलिए लगाए जाते हैं ताकि हमारे आस पास जो नकारात्मक ऊर्जा है, वो खत्म हो सके. ऐसा करने पर हमारे आस-पास की नकारात्मक ऊर्जा सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है.
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