सबसे ज़्यादा आबादी वाले देश चीन ने खाने की बर्बादी रोकने के लिए एक बड़ा अभियान शुरू किया है. इक्कीसवीं सदी को सेंचुरी ऑफ़ चाइना बनाने का अभियान चला रहे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने देश की जनता को फ़रमान जारी किया है कि वो किसी भी हाल में खाना न बर्बाद करें.
पिछले हफ़्ते, चीन के सरकारी अख़बार पीपुल्स डेली में छपी ख़बर के अनुसार, राष्ट्रपति सी जिनपिंग ने आदेश जारी किया है कि चीन के नागरिक, ‘कम में काम चलाने की आदत सीखें. और जनता ऐसा सामाजिक माहौल बनाए जहां पर बर्बादी के लिए लोगों को शर्मिंदा किया जाए. और किफ़ायतशारी के लिए लोगों की तारीफ़ हो.’
Chinese are wasting too much at dinner tables. When I dined out with expat friends in Shanghai, it turned out I often ordered way too much given my restraint compared to my Chinese friends. https://t.co/BElIlc2o0i pic.twitter.com/Me52YQnaHf
— Chen Weihua (陈卫华) (@chenweihua) August 21, 2020
आज जब चीन का पूरी दुनिया में विरोध हो रहा है, तो शी जिनपिंग के इस आदेश के कई मायने निकाले जा रहे हैं. पहला तो ये कि वो अपने देश को खाने के मामले में आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं. दूसरा ये कि जब दुनिया के कई देशों के साथ चीन का तनाव बढ़ रहा है, तो चीन को खाद्यान्न की सप्लाई चेन अगर टूटती है, तो चीन में खाने के लिए हाहाकार न मच जाए. चीन के हुक्मरानों को आशंका इस बात की है कि कहीं अमेरिका समेत विश्व के तमाम देशों से बढ़ते तनाव के चलते, चीन जो खाने-पीने का सामान आयात करता है, वो न रुक जाए.
शी जिनपिंग के आदेश के बाद चीन में ये अफ़वाह भी फैल गई है कि देश में खाद्यान्न की किल्लत हो रही है. इसीलिए, कम्युनिस्ट सरकार ये चाहती है कि देश के रईस खाने की बर्बादी न करें. वरना इसका ख़ामियाज़ा देश के ग़रीब तबक़े को उठाना पड़ सकता है.
इस साल चीन में भयंकर बाढ़ भी आई हुई है. इसके चलते, चीन में खाद्यान्न की कमी होने की आशंका जताई जा रही है.
चीन की सरकार के खाने की बर्बादी रोकने के फ़रमान से ये अफ़वाह बड़ी तेज़ी से फैल रही है कि देश में खाद्यान्न की कमी हो गई है. जिसके बाद, कम्युनिस्ट पार्टी की प्रोपेगैंडा मशीन सुपर एक्टिव हो गई है. लोगों के बीच ये प्रचार किया जा रहा है कि देश में हाल ही में अनाजों की बंपर फ़सल हुई. और इस समय चीन में अनाज़ के भंडार रिकॉर्ड स्तर पर हैं.
लेकिन, चीन में कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो साम्यवादी सम्राट शी जिनपिंग के आदेश को दिल से लगा बैठे हैं. चीन के एक स्कूल ने आदेश निकाला है कि वो ऐसे छात्रों पर प्रतिबंध लगा देगा, जो तय मात्रा से अधिक खाना बर्बाद करते हैं. वहीं, एक रेस्टोरेंट ने अपने यहां आने वाले ग्राहकों का वज़न करना शुरू कर दिया है. ताकि, ऐसे लोग रेस्टोरेंट में न आ सकें, जिनके ज़्यादा खाना ऑर्डर करने की आशंका है. यही नहीं, इस रेस्टोरेंट में एक वेटर को तो ख़ास तौर से ये ज़िम्मेदारी दी गई है कि वो ग्राहकों की प्लेट पर नज़र रखे कि कहीं वो खाना बर्बाद तो नहीं कर रहे.
चीन हर साल लगभग सवा सौ अरब डॉलर का खाद्यान्न अन्य देशों से आयात करता है. जिससे कि वो अपनी एक अरब चालीस करोड़ की आबादी का पेट भर सके. चीन सबसे ज़्यादा खाने का सामान ब्राज़ील से आयात करता है. 2017 में चीन ने ब्राज़ील से क़रीब 28 अरब डॉलर का खाने का सामान आयात किया था. चीन को खाने पीने का सामान सप्लाई करने के मामले में अमेरिका दूसरे नंबर पर आता है. जहां से चीन हर साल क़रीब बीस अरब डॉलर का खाने पीने का सामान ख़रीदता है. इसके अलावा, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और इंडोनेशिया जैसे देश हैं. ये सभी देश चीन को हर साल पांच अरब डॉलर से भी अधिक का खाने पीने का सामान निर्यात करते हैं.
अमेरिका के साथ तो चीन पिछले दो वर्षों से व्यापार युद्ध में उलझा हुआ है. इसके अलावा, कोरोना वायरस का प्रकोप फैलने के बाद, ब्राज़ील, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूज़ीलैंड से भी उसके संबंध ख़राब हुए हैं. वहीं, इंडोनेशिया के साथ दक्षिणी चीन सागर को लेकर चीन का विवाद चल रहा है.
कुल मिलाकर कहें, तो चीन को खाने-पीने का सामान बेचने वाले टॉप के दस देशों में से आठ के साथ उसका कोई न कोई विवाद चल रहा है. अगर, इन देशों के साथ चीन के संबंध और बिगड़ते हैं, तो ज़ाहिर है इन देशों से चीन को खाने-पीने के सामान की आपूर्ति बाधित हो सकती है. और शायद इसी वजह से शी जिनपिंग ने अपने देश के नागरिकों को ‘क्लीन प्लेट’ अभियान में शरीक़ होने के लिए कहा है.
पर, दिक़्क़त ये है कि चीन की खान-पान की संस्कृति, शी जिनपिंग के इस फ़रमान के बिल्कुल उलट है. चीन में समृद्धि का दौर आने के बाद से ज़्यादा खाना ऑर्डर करने का चलन बढ़ा है. लोग ज़रूरत से अधिक खाना मंगा लेते हैं. इसके बाद बहुत सारा खाना यूं ही छोड़ दिया जाता है. इसे अपने रिश्तेदारों, ग्राहकों, कारोबारी साझेदारों और अहम मेहमानों के प्रति उदारता का प्रतीक माना जाता है.
माना जाता है कि चीन के नागरिकों द्वारा ज़रूरत से ज़्यादा खाना ऑर्डर करने से देश में हर साल एक करोड़ अस्सी लाख टन खाना बर्बाद हो जाता है. जबकि, इतने खाने से तीन से पांच करोड़ लोगों का पेट हर साल भरा जा सकता है.
भले ही शी जिनपिंग के खाना बचाने और बर्बाद न करने के फ़रमान को शाहख़र्ची रोकने का आदेश कहा जा रहा हो. मगर, ये इस बात का भी संकेत है कि साम्यवादी सम्राट शी जिनपिंग, देश पर अपनी अमिट छाप छोड़ने के लिए, लोगों के खान-पान के तरीक़े भी बदलना चाहते हैं. और, वो उस समय चीन के लोगों को खाना बर्बाद करने से रोकना चाह रहे हैं, जब देश में समृद्धि आ रही है. लोगों के पास ख़र्च करने के लिए ज़्यादा पैसे हैं.
ऊंची आलीशान इमारतों, चमकदार सड़कों, महंगी कारों वाले इस चीन को शायद शी जिनपिंग के फ़रमान न पसंद आए.
मगर, चीन के लिए खाने की बर्बादी रोकने के सबक़ ऐतिहासिक हैं, जिन्होंने चीन के साठ साल पुराने स्याह इतिहास की यादें ताज़ा कर दी हैं.
चीन ने वो दौर भी देखा है जब वहां पचास और साठ के दशक में करोड़ों लोग भुखमरी के शिकार हुए थे. अकाल से उनकी मौत हो गई थी. ये वो दौर था, जब कम्युनिस्ट पार्टी के चेयरमैन माओ ने 1958 में ग्रेट लीप फॉरवर्ड मिशन शुरू किया था. कहा जाता है कि इसके बाद के चार वर्षों में चीन में क़रीब पांच करोड़ लोग भूख से मर गए थे. उस समय चेयरमैन माओ अपने देश की जनता से अपील करते थे कि वो दिन में सिर्फ़ दो बार खाना खाएं. इनमें से एक खाना तो केवल लिक्विड होना चाहिए. 1958 से 1962 के चार वर्षों में चीन में खाने पीने के सामान की भारी कमी हो गई थी. क्योंकि हर नागरिक को खेती छोड़ कर अपने यहां कुछ न कुछ औद्योगिक काम करने को कहा गया था. इसके अलावा अधिकारियों ने जान बूझकर खाद्यान्न के उत्पादन को बढ़ा चढ़ाकर पेश किया था. जबकि, चीन की जनता के पास दो वक़्त के खाने के लिए भी अनाज नहीं होता था.
मजबूरी में लोग जानवरों के चारे तक को खाने लगे थे. उसी दौर में चीन में जंगली जानवरों को खाने के चलन की शुरुआत हुई थी. हालात इतने ख़राब हो गए थे कि माओ की सरकार ने लोगों को खाने-पीने और कारोबार के लिए जंगली जानवर पालने की इजाज़त दे दी थी.
चीन, आज उस दौर से भले ही बहुत आगे निकल चुका हो. मगर, इस समय चीन की अर्थव्यवस्था की हालत ख़राब है. कोविड-19 के कारण कई देश अब उसके साथ कारोबार कम कर रहे हैं. फिर, इस साल बाढ़ के कारण चीन के एक बड़े हिस्से में खेती नहीं हो पा रही है.
इन परिस्थितियों में चीन में अनाज के दाम भी लगातार बढ़ रहे हैं. पिछले साल के मुक़ाबले इस साल खाने पीने के सामान की क़ीमतों में पंद्रह फ़ीसद तक का इज़ाफ़ा हुआ है.
दुनिया में बढ़ते तनाव और अपने यहां बाढ़ से बिगड़े हालात को देखते हुए ही, शी जिनपिंग ने ये अभियान शुरू किया है. ताकि, मुश्किल वक़्त में अपने देश की जनता का पेट भर सकें.
क्योंकि, किसी भी देश की बेहतरी के लिए वहां खाने पीने के सामान की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध होनी चाहिए. वरना बहुत से देशों में अराजकता फैल जाती है.
इसकी सबसे हालिया मिसाल, लेबनान में देखने को मिली. लेबनान की राजधानी बेरूत में अमोनियमन नाइट्रेट के एक भंडार में धमाके के कारण, देश का सबसे बड़ा खाद्यान्न भंडार भी नष्ट हो गया था. इसके चलते, लेबनान के पास केवल एक महीने का अनाज बचा रह गया था. बेरूत में धमाके के बाद खाने-पीने के सामान की क़ीमतें बढ़ीं, तो जनता कोरोना वायरस का ख़ौफ़ छोड़ कर सड़कों पर आ गई. जनता के विरोध के चलते आख़िरकार लेबनान की सरकार को इस्तीफ़ा देना पड़ा.
ये सिर्फ़ चीन के लिए ही नहीं, पूरी दुनिया के लिए सबक़ है. आज भी दुनिया भर में करोड़ों लोगों को पेट भर खाना नहीं मिलता. भारत में भी ऐसे लोगों की अच्छी ख़ासी तादाद है.
ऐसे में शी जिनपिंग का खाने की बर्बादी रोकने का फ़रमान, पूरी दुनिया के लिए सबक़ है.
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